राहु-केतु क्या होते हैं?

मैं केवल वैज्ञानिक उत्तर के सन्दर्भ में बात करूँगा। खगोल शास्त्र के सिद्धान्त याद रहें इसलिए जो पौराणिक कथाएँ बनाई जाती थी , वो सर्वविदित हैं।

इसको समझने के लिए एक सवाल पर विचार करें।

हम जानते हैं कि सूर्य ग्रहण तब होता है जब चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आता है। हम ये भी जानते हैं की चन्द्रमा पृथ्वी का पूरा चक्कर लगभग २७ दिनों में कर लेता है। तो सवाल ये है कि हर महीने सूर्य ग्रहण (या चंद्र ग्रहण ) क्यों नहीं होता है।

सही प्रश्नो के माध्यम से ही सही उत्तर पर पहुँचा जाता है।

चन्द्रमा की गति को ठीक से समझाने के लिए अनेको गलत चित्र प्रचलित है। एक गलत चित्र यह भी है। सही चित्र को समझने के बात स्पष्ट हो जाएगा की इसमें क्या गलतियाँ हैं।

इसलिए इसमें थोड़ी सावधानी की आवश्यकता है।

पहले पृथ्वी की कक्षा के पृष्ठ को परिभाषित करते हैं। सूर्य का चक्कर लगाती हुई पृथ्वी का केंद्र जिस तल पर गति करता पृथ्वी की कक्षा का पृष्ठ कह देते है। एक अदृश्य , अनन्त पन्ने की कल्पना करें जिस पर सूर्य का चक्कर लगाती हुई पृथ्वी का केन्द्र रहता हों। यही पन्ना वो पृष्ठ है जिसकी बात हम कर रहें है। इसको पृथ्वी की कक्षा समझने का भ्रम न करें , जो मात्र एक दीर्घ वृत्त होगी। यहाँ पर हम उस तल की बात कर रहें जिस पर ये दीर्घ वृत्त पृथ्वी बनाती हुई जाती है।

चित्र के दो भाग है एक सूर्य को स्थिर मानकर दूसरा पृथ्वी पर स्थित दर्शक को स्थिर मानकर ।

चित्र में पर इस पृष्ठ/तल को हल्के रंग से दिखाया है। पृथ्वी की कक्षा को अलग से एक चाप की तरह दिखाया है। चन्द्रमा की कक्षा के तल को हल्के बैँगनी रंग से दिखाया गया है। वैसे तो आंतरिक्ष में ऊपर या नीचे कुछ नहीं होता , समझने के सरलता के लिए तल के और के क्ष्रेत्र को ऊपर और दूसरी और के क्षेत्र को नीचे कह दिया गया है।

हम देख सकते हैं कि चन्द्रमा की गति उसकी तल में नहीं है जिस तल पृथ्वी की कक्षा है। इसलिए पृथ्वी की परिक्रमा २७ दिनों में पूरी करने के बाद भी हर महीने चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच नहीं आएगा क्योंकि चन्द्रमा की कक्षा का तल अलग है, जैसे कि दो अदृश्य पन्ने पाँच डिग्री के कोण पर एक दूसरे को पार कर रहें हों।

अब हम चन्द्रमा की गति के तल की बजाय उसकी कक्षा पर ध्यान देतें हैं। जहाँ पर चन्द्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के पृष्ठ/तल को जिन दो बिन्दुओ पर काटती है , उन्ही बिंदुओं को राहु और केतु कहा जाता है। इन दोनों बिन्दुओ का सम्मिलित नाम चन्द्रपात है।

जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ती है , तो पृथ्वी से देख रहे व्यक्ति के लिए तारामण्डल के सापेक्ष ये दो बिंदु लगभग स्थिर ही रहतें हैं। लेकिन जैसे जैसे पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ती है , सूर्य की स्थिति तारामण्डल के सापेक्ष बदलती है। जब ये बिंदु पृथ्वी और सूर्य को जोड़ने वाली रेखा पर होतें हैं , और चन्द्रमा भी इन्ही बिंदुओं में से एक पर होता है तो ग्रहण होते हैं।

पृथ्वी के सापेक्ष ये दोनों बिंदु ठीक विपरीत दिशा में होते हैं। इसलिए कुण्डली में ये सदैव ही विपरीत राशियों में होते हैं।कई चित्रों में राहु केतु उन बिन्दुओं को बताया जाता है जिनमे चन्द्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा को काटती है , ये गलत है। चन्द्रमा की कक्षा का पृथ्वी की कक्षा के पृष्ठ/तल को काटना ही सही वर्णन है।

जो गलत चित्र है उसमेँ ये बिन्दु पृथ्वी की कक्षा पर हैँ उसके तल पर नहीँ। इसमेँ चन्द्रमा के राहू या केतु पर होने पर वर्ष के किसी भी समय ग्रहण सम्भव नहीँ है। क्योँकि इन बिन्दुओँ का पृथ्वी और सूर्य को मिलाने वाली रेखा पर आ पाना असम्भव है।

परम्परागत ज्योतिष में ऐसे सभी आकाशीय चीजों को ग्रह कहा गया था जो पृथ्वी से देखने पर गति करते हुए दिखें , या जिनका कोई प्रभाव दिखाई देता हो. ये हैं सूर्य , चन्द्रमा , बुद्ध , शुक्र , मंगल , बृहस्पति , शनि , और राहु , केतु। राहु केतु स्वयं नहीं दिखते पर उनके प्रभाव को ग्रहण से समझा जा सकता है। सदियों तक ग्रहण के समय इत्यादि को देखकर इनकी गतियों की और भी जटिलताओं को समझा गया। तारामण्डल के सापेक्ष ये बिन्दु भी धीरे धीरे अपना स्थान बदलते प्रतीत होते हैं और लगभग १८ वर्ष में इनका एक चक्र पूरा होता है। वर्तमान विज्ञान की हिन्दी शब्दावली में ग्रह शब्द अगल से परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा में सूर्य चन्द्रमा राहु केतु ग्रह नहीं है। हिन्दी विज्ञान शब्दावली में ये शब्द अब अंग्रेजी विज्ञान शब्द planet का सटीक अनुवाद है।

आजकल किये जा रहे शौधों से पता चल रहा कि राहु केतु के सूर्य या चन्द्रमा को ग्रस लेने की कहानियों का उद्देश्य खगोलीय घटनाओं को याद रखने की सरलता थी।

ऐसा हम कैसे कह सकते हैं ? राहु केतु की एक कहानी संयोग हो सकती है पर अगर अनेको और कहानियों के तार खगोलीय घटनाओं से जुड़ने लगे तो फिर ये संयोग नहीं रहेगा। चन्द्रमा की सत्ताईस पत्नियाँ होना और चन्द्रमा को रोहिणी से विशेष प्रेम होने के प्रसंग को सत्ताईस नक्षत्रों से जोड़कर देखा जा सकता जिनमे रोज चाँद एक दिन ठहरता है। लेकिन पौरणिक काल में रोहिणी नक्षत्र से उसकी विशेष निकटता थी, इसको गणनाओं से समझा जा सकता है। इसी तरह अगस्त्य तारे के प्रकट होने की घटना को समुद्र तल के घटने से जोड़कर देखा गया है , जो महर्षि अगस्त्य के समुद्र को पी जाने की कहानी से जुड़ती है।