पञ्चाङ्ग और कुण्डली के लिए प्रयोग किये जाने वाले ग्रह आँखों से देखे जा सकते हैं।
बुध, शुक्र, मङ्गल, बृहस्पति, शनि
यह ग्रह नंगी आँखों से दिखाई तो देते हैं, पर इसको पहचानना भी पड़ेगा। एक अनजान व्यक्ति जब ग्रहों को देखता है तो तारा ही कहता है।
ग्रहों और तारों की पहचान हमारी स्कूली शिक्षा में नहीं कराई जाती जबकि मेरा मानना है कि आँखों से दिखाई देने वाले ग्रहों और तारों की पहचान विज्ञान की सही समझ के लिए आवश्यक है।
ग्रहों और तारों की पहचान के लिए सबसे पहले हिरणी (Orion ) तारामण्डल के ठीक पीछे दिखाई देना वाला तारा सिरिस पहचानना चाहिए। इसका कारण है कि सिरिस सबसे चमकीला तारा है।
आजकल (१७ फरवरी २०२२) सिरिस को शाम से रात्रि 3 बजे तक देखा जा सकता है। (सभी समय पूना के अनुसार हैं , भारत के अन्य स्थानों पर ये समय थोड़ा बदल सकता है। ) पहले हिरणी को ढूँढें फिर उसके तीन तारों की सीध में सिरिस भी मिल जायेगा।
यदि कोई रात्रि में दिखने वाला आकाशीय पिण्ड सिरिस से अधिक चमकीला है तो वस्तुतः वह एक ग्रह है। ग्रहों में बुध, शुक्र तथा बृहस्पति ये तीन सिरिस से अधिक चमकीले हैं।
आजकल (१७ फरवरी २०२२) बृहस्पति शाम के समय दिखाई देता है लेकिन जल्दी ही अस्त हो जाता है (७:३० pm). आजकल इसको सूर्यास्त के बाद पश्चिम में कुछ समय तक देखा जा सकता है।
शुक्र और बुध केवल सुबह या शाम को दिखाई देते हैं क्योंकि ये सूर्य के पास हैं और लगभग उसके साथ ही उदय और अस्त होते हैं। शुक्र सबसे चमकीला है इसलिए पहचानना बहुत सरल है। बुध सूर्य के बहुत करीब है इसलिए इसको देखने के लिए सही स्थिति का प्रतीक्षा करना होता है।
बुध या शुक्र यदि सूर्य के पश्चिम में हैं तो वो सुबह दिखाई देगा यदि पूर्व में है तो शाम को दिखाई देगा।
आजकल (१७ फरवरी २०२२) प्रातः काल लगभग ५:३० में आप शुक्र को पूर्व दिशा में देख सकते हैं। जो सूर्योदय के कुछ समय पश्चात दिखना बन्द हो जायेगा, यद्यपि इसके अस्त होने का समय लगभग ३:०० pm है।
मङ्गल और शनि की चमक अन्य तारों जैसी ही है जिससे इनकी पहचान थोड़ी कठिन हो जाती है।
मङ्गल थोड़ी लालिमा लिए होता है, इसलिए पहचाना जा सकता है। शनि अन्य तारों में बिलकुल घुल जाता है इसकी पहचान और भी कठिन होती है। फिर भी यदि आप मुख्य तारामण्डलों को पहचानते हैं तो शनि उनसे अलग करके पहचान पाएँगे।
प्राचीन भारत और यूरोप में सभी चलते प्रतीत होने वाले आकाशीय पिण्डों को ग्रह या planet कहा जाता था। इससे सूर्य, चन्द्रमा और दो चन्द्रपात (राहू और केतु ) भी ग्रह ही कहे जाते थे। यूरोप में राहू केतु को Dragon head और Dragon tail के नाम से जाना जाता था। राहू केतु पर मैंने यहाँ पर लिखा है।
बुध, शुक्र, मङ्गल, बृहस्पति, शनि, सूर्य , चन्द्रमा , राहू , केतु मिलाकर नौ ग्रह या नवग्रह कहलाते थे।
विश्व भर में ग्रह (या planet) शब्द की वर्तमान परिभाषा पुरानी परिभाषा से भिन्न है। आज के विज्ञान में सूर्य, चन्द्रमा, राहू, केतु ग्रहों की श्रेणी में नहीं आते हैं।