हिन्दी शब्द सरिता – पुस्तक समीक्षा

मित्रों! आज मैं आपके समक्ष एक ऐसी पुस्तक का परिचय लेकर उपस्थित हुई हूँ, जो हिन्दी शब्द-ज्ञान के लिए एक अभिनव विधा की पुस्तक सिद्ध होगी।

पुस्तक का नाम है – हिन्दी शब्द सरिता

लेखक हैं - श्री सन्दीप दीक्षित

भाषा भावोंँ की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। निरन्तर अभ्यास करने से भाषा मेंँ दक्षता प्राप्त होती है। भाषा मेंँ दक्षता प्राप्त होना मनुष्य को किसी भी क्षेत्र मेंँ सफल बनाने मेंँ अत्यन्त सहयोगी होता है। उत्तम एवम् श्रेष्ठ शब्दोंँ के प्रयोग से ही उन्नत भाषा का निर्माण होता है।

बदलते दौर की आपाधापी के बीच दुनिया मेँ नई-नई भाषाओंँ को सीखने और प्रयोग करने की मानोँ होड़-सी मची है। परिणामस्वरूप कहींँ न कहींँ हमारी अपनी भाषा से वर्तमान पीढ़ी की दूरी बनती जा रही है। ऐसे मेंँ आवश्यकता होती है कुछ ऐसा करने की, जिससे हमारी हिन्दी भाषा के अनेक अनमोल हीरे-मोती-माणिक सदृश शब्दोंँ रूपी अक्षुण्ण कोश को सहेजने की।

विद्यालयीय स्तर पर शिक्षकगण अनेक-अनेक युक्ति-उपाय द्वारा विद्यार्थियोंँ को भाषा की शिक्षा देते हैँ। शब्द-ज्ञान कराने का प्रयास करते हैंँ। किन्तु वह ज्ञान मात्र अङ्क-अर्जन करने तक ही सीमित रह जाता है। प्रायः ऐसा देखा और अनुभव किया जाता है कि लोग हिन्दी को अपनाना तो चाहते हैंँ, समझना भी चाहते हैं किन्तु व्याकरण के नियमोंँ को समझने के लिए उनके पास समय की कमी होती है।

देखा जा रहा है कि वर्तमान में हिन्दी को विश्व स्तर पर एक स्थान प्राप्त हुआ है। विदेशोंँ मेंँ रह रहे अनेक लोग यत्र-तत्र हिन्दी का प्रयोग करने लगे हैं, जिसके कारण अपने देश मेंँ भी लोगोंँ का रुझान हिन्दी की तरफ वापस लौटा है। ऐसे दौर में आवश्यकता है हिन्दी भाषा के प्रति उनके रुझान मेंँ अभिवृद्धि करने हेतु कुछ अभिनव-प्रयोगोंँ की ! नवीन-पुरातन शब्दोंँ को सीखने की ओर लोगोंँ के प्रवृत्ति को जगाने की!!

देखा जा रहा है कि वर्तमान मेंँ लोगोंँ के मन मेंँ हिन्दी को सीखने की इच्छा तो है किन्तु व्याकरण के क्लिष्ट एवं दु:साध्य नियमोंँ के कारण न चाहते हुए भी उनकी भाषा से ही दूरी होने लगी है। ऐसे मेंँ निश्चित रूप से हमेंँ चिन्तन और मनन की आवश्यकता है। कुछ अभिनव प्रयोग एवं प्रयास की आवश्यकता है !!

इस दिशा में माननीय सन्दीप दीक्षित जी द्वारा अथक प्रयास और परिश्रम से रची गई पुस्तक हिन्दी शब्द सरिता अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकती है। यह पुस्तक निश्चित रूप से पाठकोंँ के बहुमूल्य समय (जो व्याकरण के अध्ययन में खर्च होता) को बचाने मेंँ सहायक होगी।

हिन्दी शब्द सरिता कोई शब्दकोश तो नहीँ किन्तु शब्दोँ का ज्ञान अवश्य कराती है। यह पुस्तक शब्दोँ को इतने सरल और रोचक ढंग से प्रस्तुत करती है कि पाठक जैसे ही एक शब्द को पढ़ता है उसी के साथ उसी के बन्धुवर्गीय अनेक शब्दोँ को सीखता जाता है, अनायास ही बिना किसी प्रयास के।

हिन्दी शब्द सरिता हिन्दी भाषा के असंख्य शब्द-सम्पदा को अपने आँचल मेंँ समेटे हुए है, इस बात का अनुभव मुझे पुस्तक को पढ़कर हुआ। पच्चीस अध्यायोँ मेंँ विभक्त यह पुस्तक शब्द-ज्ञान के सन्दर्भ में मील का पत्थर सिद्ध होने वाली है। अध्यायोंँ के शीर्षकोंँ से ही इसकी रोचकता का आभास किया जा सकता है।

कुछ शीर्षक इस प्रकार हैंँ - ओंकार और झंकार, श्रीमान का शुभ नाम, आत्म’कथा, यथा राजा तथा प्रजा, अति का भला न, मदिरालय, नख शिख वर्णन, दस और दो बारह, बनजारा और वाणिज्य, इक्कीस या उन्नीस, भाड़ मेंँ जाने वाला कहाँ जाता है?

इसके अतिरिक्त मङ्गलाचरण के रूप में सरस्वती-वन्दना न केवल पुस्तक में चार चाँद लगाती है अपितु लेखक की कवित्व-क्षमता का भी बोध कराती है। सन्दीप जी ने इस पुस्तक मेंँ अनेक विषयोंँ से सम्बन्धित शब्दावली को अत्यन्त रुचिकर ढंग से रखने का प्रयास किया है, जो निश्चित रूप से समस्त पाठक वर्ग के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

मेरे विचार में एकमात्र निम्नलिखित उदाहरण ही इस पुस्तक की सामर्थ्य पर प्रकाश डालने के लिए पर्याप्त होगा।

बालोँ का एक छोटा गुच्छा जो थोड़ा अलग लटका हुआ हो वह लट होता है। जो लट घूमकर फिर से ऊपर को उठी है या घुँघराली हो गई है वह अलक होती है। यदि एक छोटी सी अलक माथे पर आई है तो और भी सुन्दर हो गई है। लम्बे केश जब गूँथे जाते हैँ तो वेणी या चोटी बनती है। वेणी अकसर बालोँ के तीन भाग करके फिर उन तीनोँ को आपस मेँ गूँथकर बनाई जाती है।

जहाँ ललाट पर लटकी एक अलक ललाट का सौन्दर्य बढ़ाती है वहीँ मोती से चमकते स्वेद-कण ललाट की शोभा बढ़ाते हैँ। ललाट अर्थात माथा। स्वेद-कण पसीने के छोटे-छोटे कण होते हैँ। कहीँ पर स्वेद-कण श्रम का संकेत देते हैँ तो कहीँ पर केवल सौन्दर्य बढ़ाते हैँ। ललाट को मस्तक और भाल भी कहा जाता है। ललाट पर बिन्दी या तिलक ललाट की शोभा बढ़ाते हैँ।

इस पुस्तक की एक और विशेषता यह है कि इस को पढ़ते हुए ऐसी अनुभूति होता है, मानो कोई सामने बैठकर इन बातों को समझा रहा हो, बता रहा हो ! जबकि अन्य पुस्तकोंँ को पढ़ने पर ऐसा नहीँ प्रतीत होता।

अन्त मेँ मैँ यही कहना चाहती हूँ कि यह पुस्तक खेल-खेल मेंँ अनायास ही शब्द सामर्थ्य को बढ़ाने वाली है। मैंँ अपनी ओर से यह आग्रह करती हूँ कि सभी को यह पुस्तक एक बार अवश्य पढ़कर देखनी चाहिए। मुझे आशा ही नहींँ अपितु पूर्ण विश्वास है कि इस पुस्तक को पढ़ने से आपकी व्याकरण सम्मत शब्दोंँ को सीखने सम्बन्धी समस्त पूर्व अवधारणाएँ टूटने वाली हैँ।

इस पुस्तक हिन्दी शब्द सरिता के लिए मैंँ अपने मूल्याँकन के आधार पर १०/१० अङ्क देती हूँ।

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