हिन्दी-संस्कृत के अनुसार... कारक एवं प्रयोग

प्रश्न - एक वाक्य में कितने कारक चिन्हों का प्रयोग कर सकते हैं?

जैसा कि हम सभी को ज्ञात है कि वाक्य में प्रयुक्त हुए ऐसे शब्द कारक कहलाते हैं, जिनका क्रिया से सीधा सम्बन्ध होता है।

इस आधार पर वाक्यों में अनेक कारकों का प्रयोग होता है। हिन्दी व्याकरण के अनुसार कारकों की संख्या कुल आठ मानी जाती है।

  1. कर्ता
  2. कर्म
  3. करण
  4. सम्प्रदान
  5. अपादान
  6. सम्बन्ध
  7. अधिकरण
  8. सम्बोधन

कारक एवम् उनके चिह्न (परसर्ग / विभक्ति चिह्न) :point_down:

कर्ता – ने,
कर्म – को,
करण – से,
सम्प्रदान – के लिए ,
अपादान – से अलग होने में,
सम्बन्ध – का के की / रा रे री / ना ने नी,
अधिकरण — में, पर, ऊपर,
सम्बन्ध — हे!, /भो! /अरे! /ओ! /ऐ! /ए! /रे!

इन्हीं चिह्नों से कारकों की पहचान होती है।

सम्बन्ध — जैसे – राम का भाई आता है… इस वाक्य में ‘आता है’ क्रिया का सम्बन्ध राम से नहीं अपितु भाई से है। अत: राम का को कारक नहीं माना गया यहाँ केवल राम का कर्ता से सम्बन्ध बताया गया है!

ठीक इसी तरह सम्बोधन शब्द हे, रे, ऐ आदि मात्र पुकारने के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे — ऐ लड़के! यहाँ आओ! यहाँ आने की क्रिया का सम्बन्ध मात्र लड़के से है ‘ऐ’ से नहीं!

यही कारण है कि संस्कृत व्याकरण में स्पष्ट रूप से पाणिनि ने कह दिया है कि कारकों की संख्या केवल छह ही होती है, क्योंकि सम्बोधन और सम्बन्ध कारकों के शब्दों का क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।

आपने एक ही वाक्य में कई कारक चिन्ह के प्रयोग की बात की है… वह भी सकने की बात…

अतः मैं निम्नलिखित वाक्य आपके समक्ष प्रस्तुत करती हूँ जिसमें सम्बोधन को छोड़कर समस्त कारकों के चिह्नों का प्रयोग किया गया है।

राम ने अयोध्या से वन जाने पर सीता की प्रतिष्ठा के लिए रावण को अपने हाथों से लंका में मारा।

  • राम ने – कर्ता

  • अयोध्या से – अपादान

  • सीता की – सम्बन्ध

  • प्रतिष्ठा के लिए – सम्प्रदान

  • रावण को – कर्म

  • हाथों से – करण

  • लंका में – अधिकरण

इस प्रकार इस वाक्य में कुल सात कारक-चिह्नों का प्रयोग हुआ है। हाँ… वाक्य कुछ दीर्घ अवश्य हो गया है… किन्तु शुद्ध है।

संस्कृत में यह बहुत ही सुन्दर श्लोक है जो कि छहों कारकों और सातों के विभक्तियों को एक साथ सुन्दर रूप में प्रस्तुत करता है –

रामो राजमणि सदा विजयते रामं रमेशं भजे,

रामेणाभिहता निशाचर चमू रामाय तस्मै नम: ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहं,

रामे चित्तलया सदा भवतु मे भो राम! मामुद्धर ।।

(रामरक्षा स्तोत्र अन्तिम श्लोक – आठों कारक / विभक्तियाँ क्रमशः प्रयुक्त हुई हैं।)

— साभार🙏

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क्या यहाँ पर “मारा” शब्द भी कर्म में सम्मिलित नहीं होना चाहिए?

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कर्म की क्रिया भी होती है… इसलिए ‘मारा’ यहाँ पर भूतकालिक क्रिया है|

किसी भी वाक्य के पूर्ण होने में… एक क्रिया का होना अनिवार्य है|

“क्रियान्वयित्वं कारकत्वम्” सभी कारक क्रिया से ही संबंध रखते हैं… कर्म एक कारक है, क्रिया कारक नहीं होती|

कर्तुरीप्सिततमं कर्म… के अनुसार कर्त्ता अपनी क्रिया से जिस सर्वाधिक इच्छित उद्देश्य को पूर्ण करे…, वह कर्म है|

यहाँ पर… राम(कर्त्ता) अपनी ‘मारा’ क्रिया से रावण( इच्छित वस्तु) कर्म को पूरा किया… अत: ‘रावण’ कर्म है|

:pray::blush:

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@Neeraj_lata_Singh जी

राम ने अयोध्या से वन जाने पर सीता की प्रतिष्ठा के लिए रावण को अपने हाथों से लंका में मारा।

इस वाक्य के बाद कारकों की जो सूची आपने दी है उसे पढकर कुछ पाठकों को ऐसा लग सकता है कि “मारा” शब्द छूट गया है , सम्भवत: इसी कारण @विनोद जी का प्रश्न आया हो . इसलिये कारकों की सूची से पहले ही स्पष्ट कर देते हैं कि “मारा” क्रिया है.

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जी…उनके संदेह का निवारण करने का प्रयास किया गया!
मैं कोशिश करती हूंँ…कि मूल पोस्ट में यह बात लिख दूँ!

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