हिन्दी की शुद्धता

जब बात हिन्दी की शुद्धता की आती है, कुछ लोग दो ही बात सोच पाते हैं। एक काफी बिगड़ा रूप और एक अति शुद्ध दिखने वाला रूप। व्यावहारिक सन्तुलन की बात इनके लिए “सही हिन्दी” की तरह ही अजनबी है। हिन्दी का संस्कृतमय होना शुद्धता नहीं है। बिना अशुद्धता के प्रयोग ही शुद्धता है। शुद्धता अपने आप में कोई और अतिरिक्त विशेष गुण नहीं है। “शुद्ध” का अर्थ “कठिन” नहीं है , “शुद्ध” का अर्थ हैं “बिना त्रुटियों की” या बिना गलतियों की ।

शुद्धता का पहला पैमाना सही वाक्य और सार्थक शब्दों का प्रयोग है। शब्दों का संस्कृत/भारतीय मूल का होना शुद्धता का पैमाना नहीं। शब्दों का संस्कृत/भारतीय मूल का जहाँ तक हो सके ठीक है, नहीं हो पाता तो बड़ी बात नहीं।

“मैं मेरे भाई के साथ जा रहा हूँ” इसमें कोई शब्द विदेशी नहीं है फिर भी वाक्य अशुद्ध है। प्रसिद्ध विज्ञापन का ये वाक्य “म्युचअल फण्ड निवेश बाज़ार जोखिमों के अधीन है।”अधीन’ के प्रयोग के कारण ये वाक्य अटपटा है, जोखिम अधीन नहीं होते, जोखिम केवल होते हैं। इस शब्द की यहाँ पर आवश्यकता नहीं है। कम्प्यूटर का प्रयोग करके अँग्रेजी से अनुवाद किया गया प्रतीत होता है। सही वाक्य और सार्थक शब्दों का प्रयोग हो उसके बाद ही विचार किया जा सकता है कितनी संस्कृतनिष्ठ भाषा की आवश्यकता है।


विदेशी और संस्कृतनिष्ठ शब्दों की बात पहले करते हैं।

एक होता है जान बूझकर बिगाड़ा हुआ रूप जैसे “ये question easy है” (अगर वाक्य में चार शब्द हैं और दो अंग्रेजी के हो गए तो फिर मैं इसको अशुद्ध ही कहूँगा ). ये बहुधा वही लोग होते है जो एक नया अँग्रेजी शब्द आते ही, शब्दकोश खोजते हैं। लेकिन जीवन भर में एक भी हिन्दी शब्द का अर्थ शब्दकोश में नहीं देखा होता है।:man_student::man_student:

या दूसरा अति शुद्ध दिखने वाला रूप “यदि आप हमें आदेश करें तो प्रेम का हम श्री गणेश करें”। ये लोग हिन्दी के नाम पर हिन्दी की टाँग तोड़ रहे होते हैं। “हे प्राणनाथ मैं आपके लिए प्राण दे सकती हूँ”, वास्तविक जीवन में ये शब्द किसी ने किसी से भारत के इतिहास में कभी नहीं कहे गए हैं। ये केवल हिन्दी आधारित चुटकलों या हिन्दी का मजाक बनाते समय ही कही गई बाते हैं।

मेरे एक मित्र हैं जो कह रह थे देखिये जी हिन्दी कितनी कठिन है, अब मैं तो किसी से नहीं कह सकता कि “मैं आपसे दूरभाष पर वार्ता करना चाहता हूँ”, I will say that I want to have a call with you… मैंने कहा भाई ये तो कह सकते हो, “फोन पर बात करना चाहता हूँ” ये पूरी तरह से सही और शुद्ध हिन्दी है। यहाँ पर फोन एक मान्य हिन्दी शब्द है , जैसे कप और गिलास हैं। जबरदस्ती टाँग तोड़कर ही शुद्ध होगा ऐसा नहीं है। “बात” को “वार्ता” कहने की क्या आवश्यकता है? और “बात” एक अच्छा शुद्ध और सरल हिन्दी शब्द है, इसका प्रयोग आप क्यों नहीं करेंगे। किस ने कह दिया कठिन और संस्कृतमय ही शुद्ध होता है।

पानी लीजिए

जल ग्रहण करें

ये दोनों ही शुद्ध हैं क्योंकि किसी में गलती नहीं हैं विदेशी शब्द नहीं हैं। लेकिन “जल ग्रहण करें” प्रचलन में नहीं है, तो उसी अनुसार प्रयोग होना चाहिए। टाँग तोड़ने से अधिक शुद्धता नहीं आती।

जहाँ पर अँग्रेजी शब्द लम्बे समय से प्रचलित है, उसको शुद्ध करने के प्रयास भी अनावश्यक हैं। कप :coffee: गिलास :milk_glass: फाइल। वैसे कप की हिन्दी प्याला आज भी प्रचलित है। तो प्याला के प्रयोग में भी हर्ज नहीं है। लेकिन कप के लिए चषक का प्रयोग आज की परिस्तिथियों में अव्यावहारिक होगा, सम्भव है कि भविष्य में यही शब्द व्यावहारिक हो जाए । वाहन बस के लिए बस और गाडी दोनों प्रचलित है, आप कोई भी प्रयोग करें। कोई भी कठिन नहीं है। train के लिए रेलगाड़ी हिन्दी है, यह शब्द सरल है, व्यवहार में भी है, यहाँ पर अँग्रेजी train का अनावश्यक प्रयोग क्यों करेंगे, जब सरल व्यावहारिक हिन्दी शब्द उपलब्ध है। रेलगाड़ी को अति शुद्धता के प्रयास में लौह पथ गामिनी कहना हिन्दी की ही हानि करना है, वैसे तो ये शब्द शुद्ध भी नहीं है किसी शब्दकोश ने इसको स्थान दिया नहीं है। साईकिल इतना पुराना प्रयोग हो चुका है, लोगों को पता भी नहीं चलेगा कि इसका मूल हिन्दी नहीं है। इसके लिए द्विचक्रवाहिनी जैसे शब्दों प्रयोग हिन्दी की हानि है। द्विचक्रवाहिनी भी किसी शब्दकोश में नहीं पाया जाता, बनावटी और अटपटा अनुवाद है। नए यन्त्रों कम्प्यूटर, मोबाइल इत्यादि की शुद्ध हिन्दी बोलने का प्रयास आज के वातावरण में हनिकारक है। एक नया अविष्कार है जिसके लिए स्वतः ही सहज शब्द हिन्दी में आया। यह शब्द है पनडुब्बी। ये शब्द इतना सहज और लोकप्रिय है कि इसकी अँग्रेजी सोचने में लोगों को एक दो क्षण लग सकते है। इस शब्द की रचना और भाव बनावटी “लौह पथ गामिनी” और द्विचक्रवाहिनी से कितनी भिन्न है। यदि कोई अँग्रेजी सबमरीन का अनुवाद “जल मग्न यान” कर देता तो वह भी प्रचलन में नहीं आ पाता , क्योंकि ये केवल अनुवाद होता उसमे भाषा की आत्मा नहीं होती।

सारांश यह है कि सही हिन्दी के प्रयोग का मन है तो सरल, शुद्ध ,और व्यावहारिक शब्दों की कमी नहीं है।

अब इसका दूसरा पक्ष भी है। कुछ लोग अनावश्यक अँग्रेजी घुसेड़े चले आते हैं। “ये question easy है” की सही हिन्दी है , यह प्रश्न सरल है, या यह प्रश्न आसान है या ये सवाल आसान है। अब प्रश्न ऐसा शब्द नहीं है जिसे लोग समझ ही ना पाते हों और question कहना आपकी मजबूरी हो। जहाँ पर सरल हिन्दी शब्द उपलब्ध है, वहाँ पर भी अँग्रेजी घुसेड़ कर ही सरल होगा ये मानना भी सही नहीं है।

अब कुछ लोग हैं, जो use का यूज बहुत करते हैं। जबकि प्रयोग और इस्तेमाल जैसे सामान्य व्यावहारिक शब्द उपलब्ध हैं।

मैंने फीवर की टेबलेट का यूज किया। ( :rage::rage: भाई, तू रहण दे :pray::pray: , छोड़ इसको, चल इंग्लिश में ही बात करते हैं। हिन्दी कम प्रयोग हो अच्छा है पर उसका बलात्कार मत करो। बलात्कार तो तुम अँग्रेजी का भी करोगे, पर वही सही। मैंने बुखार की गोली खा ली, यह ठीक ही है। या मैंने बुखार की गोली का प्रयोग किया। इसमें कोई अति कठिन संस्कृतमय हिन्दी नहीं हो गई। हम यह नहीं कहते कि बुखार को आप ज्वर ही कहें।

मेरी back में pain हो रहा है। यहाँ पर भी अंग्रेजी का प्रयोग अकारण है। “मेरी कमर में दर्द हो रहा है”, यह एकदम सरल विकल्प है।

अब हिन्दी क्रिकेट कमेंट्री का उदाहरण लेते हैं। गौर करिये कि किन शब्दों की जगह अँग्रेजी आती है। वह कोई ऐसे शब्द नहीं होते जिनकी हिन्दी प्रचलित नहीं है। वहाँ बस आदतन अँग्रेजी शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे “कॅप्टन ने बॉलर का सही टाइम पर यूज़ किया”। अब कौन हिन्दीभाषी है जो ये न समझे कि “कप्तान ने गेंदबाज का सही समय पर उपयोग किया”, इसमें कुछ भी संस्कृतमय नहीं है। हाँ अगर हुक शॉट जैसे शब्द आते हैं तो कह सकते है कि उनके लिए कोई प्रचलित हिन्दी शब्द नहीं है। हुक शॉट कहने में हर्ज नहीं। इसी तरह हर हिन्दी भाषी जनता है कि क्रिकेट में पहली पारी, दूसरी पारी क्या होता है। यहाँ पर innings कहना मजबूरी नहीं है। ये भी सब हिन्दी भाषी समझ सकते हैं कि पहला सत्र और दूसरा सत्र क्या होता है , यहाँ पर भी सेशन (session) शब्द का प्रयोग आवश्यक नहीं। प्रतिदिन समाचार पत्रों में संसद सत्र की बात होती है, सत्र एक व्यावहारिक शब्द ही है । थोड़ा झुकाव हिन्दी की तरफ अधिक हो भी गया तो भी ये समझ से बाहर हो जायेगा ऐसा नहीं है, इसलिए हिन्दी शब्द आने से बहुत अधिक डरना भी नहीं चाहिए।

हमारी भाषा में किस भाषा से आए कौन से शब्द मान्य हैं, इसका निर्णय तो उस समय के समाज की दशा ही करती है। हो सकता है कि आज से बीस वर्ष बाद संस्कृतमय हिन्दी सामान्य बात हो जाए, या कुछ और ही स्थिति हो। पर आज की स्थिति में संस्कृतमय हिन्दी सामान्य नहीं है।


दूसरी अशुद्धता होती है गलत प्रयोग की। वस्तुतः प्रमुख अशुद्धता यही है।

गलत - मैं मेरे भाई के साथ जा रहा हूँ। (वाक्य अशुद्धि)

सही - मैं अपने भाई के साथ जा रहा हूँ। (ये कठिन नहीं है, बस सही है)

गलत - तुम्हारा बात मुझे अच्छा नहीं लगा।

सही - तुम्हारी बात मुझे अच्छी नहीं लगी ।

गलत : अभी अभी जो तुमने कहा वापस कहो।

सही : अभी अभी जो तुमने कहा फिर से कहो।

गलत : मुझे बहुत मजा आती है।

सही : मुझे बहुत मजा आता है।

गलत: म्युचअल फण्ड निवेश बाज़ार जोखिमों के अधीन है (अधीन शब्द निरर्थक है, जोखिम अधीन नहीं होते जोखिम होते हैं। दुर्भाग्य से एक प्रसिद्ध विज्ञापन अँग्रेजी से शाब्दिक अनुवाद करके इस वाक्य का प्रयोग कर रहा है।)

सही : म्युचअल फण्ड निवेश करने में बाजार के जोखिम हैं। (म्युचअल फण्ड के अनुवाद का प्रयास इस समय की हिन्दी में अनावश्यक है)

इस तरह के अनेकों प्रयोग जो भाषा की दृष्टि से गलत हैं, अशुद्धता की श्रेणी में आते हैं। इसकी समझ तो सही भाषा पढने, सुनने, लिखने व बोलने से ही आती है।


यदि लिख रहे हैं तो वर्तनी (spelling) भी ठीक होनी चाहिए। हिन्दी में गलत उच्चारण का प्रभाव आपके लेखन पर भी आता है। जिन शब्दों का उच्चारण आप गलत करते हैं सम्भावना है कि उन्हीं को गलत लिखते भी हों।

कुछ शब्द जिनकी गलत वर्तनी प्रचलित हो गई है, वह हैं :

  • आशीर्वाद (गलत : आर्शीवाद)

  • कृपया (गलत: कृप्या)

  • व्यावहारिक ( गलत: व्यवहारिक)

  • अत्यधिक (गलत: अत्याधिक)


अगर सही सोच है तो सही हिन्दी का प्रयोग हो सकता है, ना तो अति शुद्धता ना बिना कारण के अँग्रेजी का प्रयोग।

फिर से, हिन्दी का संस्कृतमय होना शुद्धता नहीं है। बिना अशुद्धता के प्रयोग ही शुद्धता है। शुद्धता अपने आप में कोई और अतिरिक्त विशेष गुण नहीं है। “शुद्ध” का अर्थ “कठिन” नहीं है , “शुद्ध” का अर्थ हैं “बिना त्रुटियों की” या बिना गलतियों की।

[मौलिक लेख, सर्वाधिकार सुरक्षित]

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सही कहा आपने @संदीप_दीक्षित व्याकरण की शुद्धता ही सर्वोपरि होनी चाहिए।

जहाँ तक शाब्दिक शुद्धता की बात है तो भारतीय भाषाएँ समय के साथ प्रायः तत्समीकरण की ओर उन्मुख होती हैं। जब भी आवश्यक हो तो नए शब्द धातु के आधार पर गढ़ें या अन्य भारतीय भाषाओं में प्रचलित समकक्ष शब्द लें। अन्तिम विकल्प के रूप में विदेशी शब्द को ही अपना लेना चाहिए।

केवल अनुवाद करके नए शब्द गढ़ना उचित नहीं है।

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आजकल लोग अधिक शुद्धतावादी बनने के चक्कर में गलत को ग़लत, खुद को ख़ुद, जहर को ज़हर, कत्ल/कतल को क़त्ल/क़तल लिखने लगे हैं जो कि अनावश्यक है। हिन्दी ने क़त्ल को कत्ल और कतल के रूप में स्वीकार किया है तो इसमें समस्या क्या है।

जिस प्रकार अँग्रेजी ने हिन्दी के डकैत (dakaita) को dacoit (डकॉइट् ) के रूप में स्वीकार किया है, ठीक उसी प्रकार हिन्दी भी अपने अनुसार वर्तनी रखना चाहेगी।

माफ (हिन्दी) – माफ़ (फारसी)
फालतू ✓✓
जञ्जीर (जंजीर) [हिन्दी] – ज़ंजीर (ज़ञ्जीर) [फारसी]

@Suresh_Pant1 @विनोद

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