कौनसे हिंदी शब्द हैं जिन्हें उर्दू में हम “बुआ, फूफा, मौसा, मौसी, दादा, दादी” कहते हैं?
यह सभी हिन्दी भाषा के शब्द हैं। इनमें से प्रत्येक शब्द संस्कृत-प्राकृत से हिन्दी तथा उर्दू भाषा में आए हैं। वस्तुतः हिन्दी और उर्दू विकासक्रम में एक ही मूल से उत्पन्न एक ही तने की दो शाखाएँ हैं। मुगलकाल में हिन्दी की एक शाखा को राजकीय प्रश्रय देकर उसमें मुगलों की राजभाषा (अरबी और तुर्की से भरपूर) फ़ारसी के शब्दों का अधिकाधिक प्रत्यारोपण करते हुए इस नवीन शाखा को उर्दू का नाम दिया। इससे पहले यह भाषा हिन्दी अथवा हिन्दवी के नाम से जानी जाती रही थी। उर्दू भाषा के सभी शब्द संस्कृत, प्राकृत के अतिरिक्त फ़ारसी, अरबी, तथा तुर्क भाषाओं में उद्भूत हैं।
फूफा तथा फूफी के लिए प्राकृत भाषाओं में शब्द क्रमशः पुफ्फा एवं पुफ्फी हैं।
बुआ शब्द प्राकृत पुफ्फा का फूफा, फुआ, भुआ से बुआ के रूप में होता हुआ क्रमागत परिवर्तन है। यह पुप्फा को संस्कृत पितृष्वसा (पितृ — पिता स्वशा — बहन) का पृषोदर तद्भव रूप माना गया है। अरबी में फूफा के लिए اخو الام (अख़ू अलाम) तथा बुआ के लिए العمة (अलेमा) का प्रयोग किया जाता है।
मौसी की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा के मातुःष्वसृ (मातु — माता स्वशृ — बहन) के प्राकृत माउस्सिमा से होते हुए बना पृषोदर तद्भव स्वरूप है। मौसा इस शब्द के पुल्लिङ्ग रूप में विकसित किया गया है।
तुलना के लिए अरबी तथा फ़ारसी में बुआ को خاله (ख़ालह्) कहते हैं। मौसी के लिए फ़ारसी में دایزه (दाय्ज़ह् — छोटी माँ) शब्द भी प्रचलित है। मौसी के लिए अरबी भाषा में عمه (अम्मह् / अम्मा) शब्द प्रयोग किया जाता है। अरबी में मौसा البثور (अल्बुथर) है; तथा फ़ारसी में زگیل (ज़िगील)। ध्यान रहे कि خالو (ख़ालू) मामा है।
दादा की व्युत्पत्ति प्राकृत के दाद्द से हुई है। दाद्द को संस्कृत भाषा के तातः का तद्भव रूप मानते हैं। दादी का विकास दादा के स्त्रीलिङ्ग रूप में हुआ है।
तुलना के लिए फ़ारसी में दादा को پدربزرگ (पेदरबुज़ुर्ग — वृद्ध पिता) कहते हैं। दादी مادر بزرگ (मादरबुज़ुर्ग) हैं।
अरबी में इन्हें الجد (अलजदु) तथा جدة (जिदा) कहते हैं।
इस तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि बुआ, फूफा, मौसी, मौसा, दादा, दादी; यह सभी शब्द विशुद्ध भारतीय मूल के हैं; तथा हिन्दी एवं उर्दू दोनों ही भाषाओं में समान अधिकार से प्रयोग किए जा सकते हैं।
इसी से सम्बन्धित एक अन्य प्रश्न यह भी है :–
क्यों बुआ के पति को फूफा कहा जाता है, जबकि अन्य रिश्तों में यह ई की मात्रा लगाकर बोला जाता है जैसे चाचा-चाची, मामा-मामी?
हमारे जन्म से बने निकटतम सम्बन्ध हमारे माता-पिता तथा अपने सहोदरों (बहन, भाई) से हैं। उसके उपरान्त माता-पिता के माता-पिता, भाई एवं बहनों से हैं। इनके माध्यम से हमारे सम्बन्ध उनके जीवन-साथियों तथा उनकी सन्तानों से होते हैं।
१ माता-पिता (अपने जीवनसाथी का सम्बन्ध भी इतना ही प्रगाढ़ है, किन्तु अपने विवाह से बनने वाले सम्बन्धों को इस उत्तर में समावेश नहीं किया गया है)।
२ बहन-भाई (जीजी, भैया)
३ नाना-नानी तथा दादा-दादी
४ मामा, मौसी, काका (ताऊ — चाचा), बुआ (फूफी)
५ भौजाई, जीजा
६ मामी, मौसा, काकी, फूफा
फिर अन्य रिश्ते (हमारे चचेरे, ममेरे, फूफेरे, मौसेरे भाई-बहन आदि)
दादा तथा दादी एवं नाना तथा नानी का युग्म एक ही मूल से बना है।
वहीं भाई-भौजाई (भाभी), जीजी-जीजा, मौसी-मौसा, मामा-मामी, काका-काकी (चाचा-चाची), फूफी-फूफा भी एक ही मूल से लिंग परिवर्तन कर रचे शब्द-युग्म हैं।
फूफा को प्राकृत में 𑀨𑀼𑀧𑁆𑀨𑀼 (फुप्फु) के स्वरूप में उद्भव होने का अनुमान है। बुआ के लिये इस शब्द का स्त्रीलिंग रूप फुप्फी, फुआ अथवा फुई है। फुआ का स्वरूप परिवर्तन होकर बुआ हो गया है।
अन्य भारतीय आर्य भाषाओं में कुछ तुलनात्मक शब्द यह हैं :
- पंजाबी : फुप्फी-फुप्फा/फुफ्फड़
- सिन्धी : फूफी-फुफाडु
- कश्मीरी : फोफ/पोफ-पोफुवु
- लहन्दा : फूप्फी-फुप्फु
- पश्चिमी पहाड़ी : पुप्फी-पुप्फो
- कुमाऊँनी : फूफु-फूपा
- नेपाली : फुपु-फुपाजू
- मैथिली : पिउसी-पिउसा
- हिन्दी :फूफू/फूफी/फुआ/बुआ-फूफू/फूफा
- गुजराती : ફોઈ/ફુઈ-ફુવો (फोई/फुई-फुवो)
- मराठी : फुई-
- बंगाली : पिसी-
विशेष :—
बुआ के लिये संस्कृत मूल शब्द है पितृश्वसा जोकि पाली भाषा में पितुच्छा तथा प्राकृत भाषाओं में पिउच्चा, पिउच्छा के रूप में परिवर्तित हुआ है। हिन्दी में आते इसका स्वरूप फुआ/बुआ हो गया है।
© अरविन्द व्यास, सर्वाधिकार सुरक्षित।
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