द्विरेफ शब्द का अर्थ क्या होता है?
द्विरेफ का अर्थ भौंरा होता है, जिसे हिन्दी भाषा में अलि, भ्रमर, मधुप, षट्पद, भृंग, मधुकर आदि नामों से जाना जाता है। साधारण ग्रामीण भाषा में इसे काला बर्रा भी कहते हैं। देखिए -
श्याम वर्ण और पीताम्बर धारी हैं…ये !!!
इसके इस रूप-रंग के कारण हिन्दी काव्य में इसे श्री कृष्ण का प्रतीक भी माना जाता रहा है।
श्री कृष्ण बांसुरीवादन करते थे… और ये मधुर गुंजार करते हैं।
सूरदास जी ने तो अपने सूरसागर में पूरा एक विस्तृत अंश ही भ्रमर से सम्बोधित करके लिख दिया है, जिसे भ्रमरगीत के नाम से जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि जब श्री कृष्ण मथुरा चले गए गोपियाँ उनके वियोग में व्याकुल रहने लगी, दुखी हो गईं। श्री कृष्ण को उनकी स्थिति ज्ञात थी। वे जानते थे कि सम्पूर्ण गोकुल ग्राम उनके वियोग में दुखी है। अतः वे अपने मित्र उद्धव को गोपियों को समझाने के लिए भेजते हैं कि वे श्री कृष्ण से प्रेम नहीं बल्कि निर्गुण ब्रह्म की उपासना करें उसी से उनका कल्याण होगा।
उसी समय जब गोपियों और उद्धव का वार्तालाप हो रहा था एक भौंरा वहाँ उड़ता हुआ मण्डरा रहा था तो गोपियाँ अपना जवाब सीधे उद्धव को न देकर भ्रमर को सम्बोधित करते हुए देती हैं। अतः उस पूरे अंश को सूरसागर में वर्णित भ्रमरगीत के नाम से जाना जाता है।
तो भौंरा को हल्के में नहीं लेना है भाई …देखिए उनके नाम👇