विघ्न, बाधा और अड़चन

विघ्न, बाधा और अड़चन ये तीनों अब समानार्थी की भाँति हिन्दी में प्रयुक्त हो रहे हैं। एक दूसरे के स्थान पर वैकल्पिक रूप से इनका प्रयोग किया जाता है किन्तु तीनों में न केवल रचना की दृष्टि से, अपितु अर्थ की दृष्टि से भी सूक्ष्म अन्तर है।

विघ्न में ‘घ्न’ सबसे डरावना है। यह संस्कृत की √हन् धातु से बना है जिसका अर्थ है मारना। शत्रुघ्न (शत्रु को मारने वाला), कृतघ्न (किए हुए उपकार को न मानने वाला) शब्दों में यही घ्न है। घ्न से पहले वि उपसर्ग उसे और विशेष तथा डरावना बना देता है। विघ्न में तीव्रता अधिक है। यह ऐसी बाधा है जो किसी काम को सम्पन्न करने से पूरी तरह रोकने का प्रयास करती है।

बाधा संस्कृत √बाध् धातु से है जिसका अर्थ है दबाना, सताना, पीड़ा पहुँचाना। अमरकोश बाधा को पीड़ा का ही पर्याय मानता है। यह पीड़ा मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार की हो सकती है। ऐसी मानसिक/शारीरिक पीड़ा जो रुकावट पैदा करे, वह बाधा है। हिन्दी में अब विघ्न और बाधा में कोई अन्तर नहीं किया जाता। दोनों को पर्याय की भाँति और शब्द युग्म के रूप में भी प्रयोग किया जाता है: विघ्न-बाधा।

अड़चन विघ्न-बाधा से कुछ कम तीव्रता की रुकावट है। यह हिन्दी की अड़ना क्रिया से बनी संज्ञा है। इसी से आड़ और अड़ंगा भी बने हैं। आचार्य रामचन्द्र वर्मा अड़चन को किसी पुराने अप्रचलित शब्द ‘अड़चल’ से जोड़ते हैं और इसे दो क्रियाओं अड़ना और चलना का योग मानते हैं। उनके अनुसार विरोध आदि के कारण ठीक तरह से न चल पाना और बीच-बीच में ठहरने या रुकने के लिए विवश होना अड़चन है। अड़चन में थोड़ा और कम तीव्रता का गतिरोध है जिससे थोड़े प्रयास में पार पाया जा सकता है। किसी कार्य को सम्पन्न करते हुए जो छोटी-मोटी कठिनाइयाँ आती हैं, वे ही अड़चनें हैं। ये कार्य को पूर्ण रूप से रोकने में समर्थ नहीं होतीं, किन्तु कार्य सम्पादन करने वाले को चिन्तित कर सकती हैं। कार्यारम्भ या समाप्ति में कुछ रुकावट पैदा करके विलम्ब कर सकती हैं।

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