मनोकामना शब्द अशुद्ध है, इसका शुद्ध शब्द क्या है?

भाषा में शब्दों की शुद्धता एक जटिल विषय है। एक वर्तनी जो इस समय गलत या अमान्य है, भविष्य में शुद्ध हो सकती है यदि उसका प्रयोग भाषा के जानकारों , समाचार पत्रों प्रत्रिकाओं और पुस्तकों में व्यापक हो जाए और और लम्बे समय तक प्रचलित रहे।

वर्तनी की शुद्धता अंतत: शिक्षित समाज तय करता है . अंग्रेजी के Colour शब्द का उदाहरण लेते हैं जिसको अमरीका में color लिखा जाता है। इंग्लैंड के लोग अमरीका वालो से ये नही कह सकते कि color को colour लिखो क्योंकि colour शुद्ध है . कहा भी तो माना नही जाएगा . सब जानते हैं कि color अमेरिकन अपभ्रंश वर्तनी है और colour ही मूल रूप है। लेकिन लम्बे समय के प्रयोग से और शिक्षित समाज के अपनाने के बाद अमरीकी शब्दकोशों ने भी इसको स्थान दे दिया है , अंततः color मान्य वर्तनी है। संस्कृत के अतिरिक्त अन्य सभी भाषाओँ का चलन व्यवहार ही निर्धारित करता है। संस्कृत में भी उदाहरण है जहाँ व्यवहार व्याकरण से भिन्न हो गया है , कमल शब्द का पुलिंग के रूप में प्रयोग होना इसका उदाहरण है। यहाँ पर अन्य प्रश्न भी है यदि मूल पर जाने लगे तो मूल का मूल क्या होगा ? अर्थात यदि color का मूल colour है तो colour का मूल क्या है ? क्या उसी मूल को नहीं अपनाया जाना चाहिए ? ये तो अंतहीन प्रक्रिया हो जायेगी। इतने मूल ढूँढ पाना असंभव है।

फिर भी भाषा में ये बदलाव इतने अनियंत्रित ना हों की समझ पाना मुश्किल हो जाए इसलिए समाज को सही वर्तनियों की सूची शब्दकोशों के माध्यम से रखनी चाहिए , जिसके समय समय पर नए संस्करण प्रकाशित होते रहने चाहिए। ( प्रकाशन से बाहर शब्दकोशों को विदेशी विश्वविद्यालय ऑनलाइन प्रकाशित करा रहें हैं ये सुखद बात है। पुराने शब्दकोश बजार में फिर से उपलब्ध हो रहे हैं. )

अभिप्राय ये है कि शब्दकोश ही वर्तनी शुद्धता प्रथम आधार है , यद्यपि कुछ भी तर्क से परे नहीं है और टंकण त्रुटि इत्यादि को भी देखना होता है।


ये उत्तर मनोकामना शब्द के हिंदी भाषा में शुद्धता अशुद्धता की बात करता है। जो शब्द हिंदी में मान्य है वो संस्कृत में अशुद्ध या शुद्ध हो सकता है। जो शब्द संस्कृत में सही है वो हिंदी में भी मान्य होता है।

मनोकामना शब्द मनः कामना शब्द से आया अवश्य है , लेकिन मूल से भिन्न होना अशुद्धता का आधार नहीं है। यदि शब्दों की शुद्धता का आधार मूल रूप ही हो जाए तो सभी तद्भव शब्द अमान्य हो जाएँ । लैटिन में TRI शब्द का संस्कृत मूल रूप त्रि ही प्रयोग करना पड़े।

मनोकामना शब्द की शुद्धता देखने के ये कुछ तरीके हैं।

१. प्रतिष्ठित साहित्य में इस शब्द के प्रयोग का इतिहास

२. प्रतिष्ठित शब्दकोशों में इस शब्द के प्रयोग का इतिहास

३. इस प्रकार की शब्द रचना के अन्य शब्दों की उपलब्धता। यदि अनेक शब्दों में इस प्रकार की शब्द रचना है तो संभवतः ये प्रयोग भाषा का गुण बन चुका है।

इनका बिंदुवार विश्लेषण ये है।

  • साहित्य में मनोकामना शब्द का प्रयोग काफी पुराना है। इस शब्द को हरिशंकर परसाई , सुभद्रा कुमारी चौहान , प्रेमचंद प्रयोग कर चुकें हैं। यदि ये त्रुटि है तो पुरानी हो चुकी है। यदि अशुद्धता है तो ये इन विद्वानों को स्वीकार्य थी। कविता कोश और गद्यकोश जैसे मंचों पर मनोकामना के साहित्य में व्यापक प्रयोग मिलते हैं।

यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की है लाली.
शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली .

(बालिका का परिचय - सुभद्रा कुमारी चौहान )

स्नान-पूजा तो नित्य का नियम था; पर किसी अनुष्ठान से मनोकामना न पूरी होती थी।

(नैराश्य - प्रेमचंद )

  • हिंदी के नए पुराने शब्दकोशों में मनोकामना वर्तनी मिलती है। कई स्थानों पर प्रयोग और कई शब्दकोशों में यही वर्तनी होने के आधार पर ये वर्तनी टंकण त्रुटि प्रतीत नहीं होती। और ये भी कहा जा सकता है कि शब्दकोश लेखकों को भी ये वर्तनी स्वीकार्य थी। शब्दसागर , चदुर्वेदी हिंदी अंग्रेजी शब्दकोश , ऑक्सफ़ोर्ड हिंदी अंग्रेजी शब्दकोश , “बृहत् हिन्दी कोश- कालिका प्रसाद/राजवल्लभ सहाय व मुकुन्दी लाल श्रीवास्तव कृत” में यही वर्तनी है ।
  • संस्कृत मनः का हिंदी में मनो होकर प्रयोग के अनेक उदाहरण हैं। मनोकामना केवल एक उदाहरण नहीं है। जैसे - मनोगत, मनोनयन , मनोभावना , मनोविज्ञान , मनोबल , मनोहर , इत्यादि अनेक प्रयोग मिलते हैं जो मनोकामना के साथ खड़े प्रतीत होते हैं । बृज मोहन शुक्ल जी के अनुसार इनमें मनोकामना के अतिरिक्त सभी शब्द संस्कृत व्याकरण के अनुसार सही हैं। लेकिन यहाँ पर हिंदी में मनोकामना के प्रयोग की बात कर रहें हैं।

इन आधारो पर कोई भी सामान्य व्यक्ति कह सकता है कि हिंदी भाषा के वर्तमान कालखण्ड में मनोकामना वर्तनी मान्य है और शुद्ध है।

एक गलत वर्तनी का उदाहरण लेते हैं. कृपया को कृप्या लिखना थोडा बहुत प्रचलित है लेकिन कृप्या अशुद्ध है . अशुद्ध होने की पहचान क्या है ? कैसे पता करें कि ये सोचा समझ प्रयोग है या अज्ञानतावश प्रयोग है. वही तीन आधार हैं , इस रूप को ना तो हिंदी के साहित्य में प्रयोग किया गया और ना ही इसको शब्दकोशो ने स्थान दिया है और इसके जैसे परिवर्तन अन्यत्र नहीं दिखाई देते। मनोकामना इस प्रकार की अशुद्धि नहीं है।

संस्कृत कोश में मुझे मनोकामना शब्द नहीं मिला इसलिए संभवतः ये संस्कृत में शुद्ध वर्तनी नहीं है।