मद और मत्सर : शब्दार्थ एवं प्रयोग

मद ’ एवं ’ मत्सर ’ का अर्थ क्या है ? इसे किस तरह परिभाषित करेंगे?

ग्रंथों में मनुष्य के मन के छह विकार बताए गए हैं ,जिसे षट् रिपु (षड्रिपु) के नाम से भी जाना जाता है | ये षड्विकार निम्नलिखित हैं–

  1. काम ( कामनाएं/वासनाएं)
  2. क्रोध (दूसरों के साथ आवेशपूर्ण आचरण)
  3. लोभ ( जिस वस्तु पर अधिकार न हो तथापि उसको पाने की इच्छा करना और उपाय करना)
  4. मोह (जो जीवन के लिए आवश्यक नहीं ,फिर भी उसके प्रति आसक्ति अथवा लिप्तता रखना)
  5. मद ( अहंकार /घमंड अथवा रूप-सौंदर्य /धन-संपत्ति / यौवन /पौरुष- बल आदि के कारण उत्पन्न हुआ अहंकार /नशा/ हाथी के कपोल मंडल से निकलने वाला तरल पदार्थ)
  6. मत्सर ( दूसरों की प्रसिद्धि अथवा उन्नति देखकर ईर्ष्या- द्वेष की भावना से युक्त हो जाना|)

मद :- मद का शाब्दिक अर्थ यह होता है कि किसी पदार्थ को खाने या पीने के प्रभाव से मस्तिष्क पर मतवालेपन जैसी स्थिति हो जाना| मद के प्रभाव में आने पर मनुष्य को उचित अनुचित का ध्यान नहीं रहता |

मद केवल खाद्य अथवा पेय पदार्थों से ही नहीं अपितु धन-संपत्ति, रूप-सौंदर्य, गुण, यौवन, पौरुष,भुजबल आदि से भी उत्पन्न होता है|

यही कारण है कि इसे मनुष्य के मन का विकार को बताया गया है | यह कदापि मनुष्य के लिए हितकारी नहीं होता |मनुष्य को चाहिए कि अपने मन में किसी भी बात को लेकर मद अर्थात अहंकार / घमंड का भाव न आने दे|

*हाथी के कपोलमंडल(गण्डस्थल) से एक तरल पदार्थ निकलता रहता है उसे भी मद कहा जाता है |

कहा जाता है कि यह एक तरह का नशीला पदार्थ होता है जिसके प्रभाव में हाथी में सदैव मतवालापन रहता है अन्यथा उस में अपार शक्ति होती है ,यदि वह मतवालेपन (नशे) की स्थिति में न रहे तो वह आस-पास के लोगों और वस्तुओं को बहुत अधिक क्षति पहुंँचा सकता है |

शब्दकोश में मद के विभिन्न अर्थ दिए गए हैं, जिन्हें देखा जा सकता है –

.मद ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. हर्ष । आनंद ।

२. वह गंधयुक्त द्राव जो मतवाले हाथियों की कनपटियों से बहता है । दान ।

३. वीर्य ।

४. कस्तूरी ।

५. मद्य ।

६. चित्त का वहु उद्वेग वा उमंग जो मादक पदार्थ के सेवन से होती है । मतवालापन । नशा ।

७. उन्मत्तता । पागलपन । विक्षिप्तता । उ॰— सत्यवती मछोदरी नारी । गंगातट ठाढ़ी सुकुमारी । पारा- शर ऋषि तहँ चलि आए विवश होइ तिनके मद धाए ।—सूर (शब्द॰) ।

८. गर्व । अहंकार । घमंड ।

९. अज्ञान । मतिविभ्रम । प्रमाद ।

१०. एक रोग वा नाम । उन्माद नामक रोग ।

११. एक दानव का नाम ।

१२. कामदेव । मदन । मुहा॰—मद पर आना = (१) उमंग पर आना । (२) कामोन्मत्त होना । गरमाना । (३) युवा होना ।

मद वि॰ मत्त । उ॰—मद गजराज द्वारा पर ठाढ़ो हरि ( ? )नेक वचाय । उन नहिं मान्यो संमुख आयो पकरेउ पूँछ फिराय । सूर (शब्द॰) ।

मद ^३ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰]

१. लंबी लकीर जिसके नीचे लेखा लिखा जाता है । खाता ।

२. कार्य या कार्यालय का विभाग । सीगा । सरिश्ता ।

३. खाता । जैसे,—इस मद में सौ रुपए खर्च हुए है ।

४. शीर्षक । अधिकार ।

५. ऊँची लहर । ज्वार ।[[1]](https://hi.quora.com/

मत्सर :- मत्सर का शाब्दिक अर्थ होता है ईर्ष्या अथवा द्वेष| ईर्ष्या द्वेष मनुष्य का एक स्वाभाविक अवगुण होता है जो प्राय:सभी में पाया जाता है, कहीं कम तो कहीं ज्यादा | यह बात अलग है कि कुछ लोग वयस्क होने पर स्वयं को इन दुर्गुणों से बचा लेते हैं उनके मन में किसी के प्रति ईर्ष्या-द्वेष नहीं आता | इसके विपरीत कुछ ऐसे लोग होते हैं जो किसी दूसरे की उन्नति, प्रशंसा या समृद्धि देखकर ईर्ष्या-द्वेष रूपी दुर्भावना से पीड़ित हो जाते हैं |

यह जो अकारण दूसरे का उत्कर्ष देख कर मन में ईर्ष्या-द्वेष की भावना आती है इसी को मत्सर कहा गया है | वर्तमान में इस भावना का विस्तृत रूप में देखा जा सकता है |घर से लेकर बाहर तक सर्वत्र ऐसा दिखाई देता है कि लोग स्वयं के कष्ट से दुखी नहीं बल्कि दूसरों की खुशी से दुखी होते हैं |यही भाव वास्तव में मत्सर कहलाता है |

शब्दकोश में मत्सर विभिन्न अर्थ दिए गए हैं , जिन्हें देखा जा सकता है–

. शब्दसागर

मात्सर्य संज्ञा पुं॰ [सं॰] मत्सर का भाव । किसी का मुख या उसकी संपदा न देख सकने का स्वभाव । किसी को अच्छी दशा में देखकर जलना । ईर्ष्या । डाह ।[[2]]

उदाहरण–
कहते हैं कि रावण में हजार हाथियों का बल था और वह अपने बल
के मद में चूर रहता था |


शिशुपाल श्रीकृष्ण का संबंधी था किन्तु वह उनके प्रति मत्सर का
भाव रखता था|

–साभार :pray:
लेखिका

(https://hi.quora.com/

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