मकर संक्रान्ति का दिन १४ और १५ जनवरी में क्यों बदलता रहता है?

वर्तमान में मकर संक्रांति १४ या १५ जनवरी की होती है। ये बदलाव क्यों होता रहता है? कुछ लेख इसका कारण हिन्दू पंचांग को बताते है जो बिलकुल गलत है।

न तो ये हिन्दू पंचांग के जानकर हैं और ना ही खगोलशास्त्र के , बस लिखने का मन हुआ तो लिख दिया। हिन्दू पञ्चांग के कारण जैसे सूर्योदय का समय नहीं बदल सकता इसी प्रकार मकर संक्रान्ति का समय नहीं बदल सकता।

तो फिर मकर संक्राति आगे पीछे कैसे होती है ? वस्तुतः अधिवर्ष (Leap Year) के वाले वर्ष मकर संक्रान्ति १५ जनवरी की होती है अन्यथा १४ जनवरी की ही होती है।

एक वर्ष क्या है ?

एक ग्रेगोरियन कलेण्डर का वर्ष दो उत्तरायणों के आरम्भ होने के बीच का समय है। एक वर्ष में करीब 365.24 दिन होते हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने की दो घटनाओं में भी लगभग इतना ही अंतर अर्थात 365.24 दिन का अंतर होता है , इस विषय पर आगे और भी बात करेंगे । सूर्य का मकर राशि में प्रवेश का आरम्भ मकर संक्रान्ति है।

लेकिन हम एक वर्ष में केवल 365 दिन ही रखते हैं। इस तरह हमारा वर्ष एक चौथाई दिन छोटा होता है। चार वर्षों में हम पूरा एक दिन पीछे हो जाते है और एक दिन बढ़ाना पड़ता है। जिसको लीप ईयर (अधिवर्ष ) कहते है। लेकिन मकर संक्रांति जनवरी में ही होती और अधिवर्ष का दिन हम फरवरी में बढ़ाते हैं। तो कह सकते हैं कि मकर संक्राति तो अपने सही समय पर ही है लेकिन कैलेंडर अभी पीछे ही होता है और इसलिए एक वर्ष मकर संक्रान्ति 15 जनवरी की होती। 29 फरवरी वाला दिन बढ़ाते ही कलेण्डर फिर ठीक हो जाता है और मकर संक्रांति फिर से 14 जनवरी की होने लगती है।

कलेण्डर का आगे पीछे होना ही मकर संक्रान्ति , उत्तरायण आदि तिथियों के आगे पीछे होने का कारण है। ये केवल मकर संक्रांति की बात नहीं है।

मकर संक्रांति से सम्बन्धित विकिपीडिया पृष्ठ पर मैंने ये तालिका जोड़ी है जिसको यहाँ भी जोड़ रहा हूँ।

हम देख सकते हैं कि क्यों अधिवर्ष वर्ष की आवश्यकता है। यदि अधिवर्ष वर्ष नहीं होगा तो ऊपर की सभी घटनाओं की तिथियाँ कलेण्डर के सापेक्ष आगे बढ़ती जायेगीं। लेकिन भारत में मकर संक्रान्ति के अतिरिक्त उपरोक्त किसी घटना पर किसी का ध्यान नहीं है , इसलिए केवल मकर संक्राति को देखकर तरह तरह के भ्रम हैं।

सितम्बर में दिन रात बराबर होना कभी २२ सितम्बर को होता है कभी २३ सितम्बर को , अब इस दिन कोई त्यौहार होता तो शायद इसमें भी हिन्दू पंचांग की त्रुटि बता दी जाती।

कुछ वर्षों का मकर संक्रांति का सटीक समय देखते हैं फिर बात अपने आप समझे में आ जायेगी (हर वर्ष इसमें लगभग ६ घंटे अंतर आ जाता है तो लीप ईयर या अधिवर्ष में जाकर ठीक किया जाता है )

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2016: 01:26 (इसके बाद 29 फरवरी को कलेण्डर एक दिन आगे बढ़ेगा )

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2017: 07:38

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2018: 13:46

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2019: 19:50

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2020: 02:06 (इसके बाद 29 फरवरी को कलेण्डर भी एक दिन आगे बढ़ेगा )

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2021: 08:14 (केलेण्डर के आगे बढ़ने से संक्रान्ति का दिन फिर 14 जनवरी हुआ )

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2022: 14:28

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2023: 20:43

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2024: 02:42 (इसके बाद 29 फरवरी को कलेण्डर भी एक दिन आगे बढ़ेगा )

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025: 08:54

लगभग एक दशक के अन्तराल में उत्तरायण और संक्रान्ति के समय चक्र के तारतम्य को इस चित्र से भी समझा जा सकता है।

जहाँ तक त्यौहार को मनाने के दिन का विषय है वह इस सौर घटना के आरम्भ के बाद 24 घंटे मेँ कभी भी हो सकता है। यदि यह घटना आज देर रात को हो रही है तो कुछ लोग त्यौहार अगले दिन मना सकते हैँ ।

लीप वर्ष की जटिलताएँ

दो उत्तरायण के बीच का समय लगभग 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 45 सेकेण्ड है। ये यदि ये समय ठीक ठीक दिनों में होता तो लीप वर्ष इत्यादि की जटिलाएँ नहीं होती। लेकिन यदि ये समय 365 दिन 6 घंटे भी होता तो भी लीप वर्ष के बाद उत्तरायण और कलेण्डर फिर से मिल जाते। लेकिन चार वर्षों में लीप वर्ष की 28 फरवरी के दिन केलेण्डर 23 घंटे 15 मिनट आगे होता है , पूरे चौबीस घंटे नहीं। लेकिन हम केवल एक दिन ही आगे बढ़ाते सकते हैं। अब लीप वर्ष के 1 मार्च को कलेण्डर 45 मिनट आगे हो गया। अगले लीप वर्ष कलेण्डर 45 मिनट और भी आगे हो जाएगा , कुल मिलाकर 90 मिनट . सौ वर्षों में हमने कलेण्डर को करीब 18 घंटे 45 मिनट आगे कर दिया। अब हम शताब्दी वर्ष को लीप वर्ष नहीं करते। लेकिन ऐसा करके केलेण्डर फिर लगभग 5 घंटे 15 मिनट पीछे हो गया। इस तरह से हम 400 से विभजित होने वाला वर्ष (अर्थात हर चौथा शताब्दी वर्ष ) लीप वर्ष रखते हैं। ये प्रक्रिया लगभग दस हजार वर्षों तक उत्तरायण को 21 और 22 दिसम्बर में बनाकर रख पायेगी।

जहाँ तक प्राकृतिक घटनाओं का प्रश्न है तो उनके अपने नियम हैं। कलेण्डर हम देखते हैं प्रकृति नहीं। हम तो कलेण्डर उत्तरायण के सापेक्ष मिलकर चलाने का प्रयास करते हैं। इस प्रयास के कारण तिथियाँ आगे पीछे होती प्रतीत होती हैं।

लेकिन मकर संक्रान्ति हमे अधिवर्ष को और बेहतर समझने का अवसर भी देती है।

सदी के अंत में भी मकर संक्रांति में समय को देख लेते हैं। उत्तरायण का समय भी देखा जा सकता है , लेकिन विषय मकर संक्राति है।

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2092 : 13:12 (इसके बाद 29 फरवरी को कलेण्डर एक दिन आगे बढ़ेगा )

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2093 : 19:26

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2094 : 25:38

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2095 : 6:46

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2096 : 13:54 (इसके बाद 29 फरवरी को कलेण्डर एक दिन आगे बढ़ेगा )

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2097 : 20:02

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2098 : 02:13

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2099 : 08:21

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2100 : 14:25 (ये लीप वर्ष नहीं होगा )

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2101 : 20:45

मकर संक्रांति 16 जनवरी 2102 : 03:01

मकर संक्रांति 16 जनवरी 2103 : 09:25

मकर संक्रांति 16 जनवरी 2104 : 15:40

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2105 : 22:02

उत्तरायण के सापेक्ष मकर संक्राति का आगे बढ़ना

ग्रेगोरियन कलेण्डर इस प्रकार बना है कि लम्बे समय में उत्तरायण की तिथि और वही बनी रहे। दो मकर संक्रांतियों के बीच का समय और दो उत्तरायणों के बीच के समय में भी थोड़ा अंतर है। क्योंकि मौसम का सम्बन्ध उत्तरायण से है मकर संक्रांति से नहीं इसलिए ग्रेगोरियन कलेण्डर को उत्तरायण आधारित बनाया गया है। इस प्रकार एक केलेण्डर वर्ष पृथ्वी के सूर्य को परिक्रमा पूरी करने के समय थोड़ा कम है। हम देख सकते हैं कि स्कूलों में पढ़ाए जाना वाला वर्ष कलेण्डर वर्ष नहीं है।

दो उत्तरायण के बीच का समय दो मकर संक्रांतियों के बीच के समय से लगभग २० मिनट कम है। फिर से कलेण्डर के सापेक्ष मकर संक्रांतियों के समय को देखते हैं जो चार वर्ष बाद भी सटीक अपने स्थान पर वापस नहीं आते हैं।

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2047: 00:25 (लगभग मध्य रात्रि )

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2048: 06:27 (इसके बाद इस वर्ष 29 फरवरी को कलेण्डर आगे बढ़ेगा )

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2049: 12:35

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2050: 18:50

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2051: 00:54

मकर संक्रांति 15 जनवरी 2052: 07:03

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2053: 13:10

इस कारण बहुत लम्बे समय में मकर संक्रान्ति के दिन में बदलाव आता है। ऊपर के समयों पर ध्यान दें तो देखेंगे कि अंतर छह घंटे से अधिक है। मकर संक्रांति का समय लीप ईयर सुधार के बाद भी थोड़ा थोड़ा आगे बढ़ रहा है। 2047 तक चक्र इतना आगे बढ़ जायेगा की इस वर्ष भी 15 जनवरी को मकर संक्राति हो जाएगी। तब ये समय ऐसे दिखेंगे।

अर्थात दो वर्ष 15 जनवरी और लीप ईयर के बाद 14 जनवरी। इस सदी के अंत तक ये आगे और आगे बढ़ जायेगी और चार वर्ष के चक्र में तीन वर्ष मकर संक्रांति 15 जनवरी को होगी और केवल लीप वर्ष के अगले वर्ष ही 14 जनवरी को होगी। इसके भी कुछ और वर्षों बाद मकर संक्रान्ति 15/16 जनवरी की होने लगेगी।

मकर संक्रान्ति और उत्तरायण का भ्रम भी समाज में बना है।

मकर संक्राति और उत्तरायण अलग अलग खगोलीय घटनाएँ हैं। वर्तमान में मकर संक्रान्ति 14/15 जनवरी को होती है और उत्तरायण दशा 21 दिसंबर को ही आरम्भ हो जाती है। आधुनिक कलेण्डर इस प्रकार से बनाया गया है कि अयनांत और विषुव सदैव उसी तिथि पर रहें अर्थात अधिवर्ष का थोड़ा बहुत प्रभाव छोड़ दिया जाए तो मौटे तौर सदैव 20/21 मार्च और 22/23 सितम्बर को ही दिन रात बराबर होंगे। इसी प्रकार अयनांत (उत्तरायण , दक्षिणायन दशा का आरम्भ और अंत )भी 21/22 दिसंबर और 20/21 जून को ही होंगे। इससे कलेण्डर के सापेक्ष मौसम सदैव एक से ही रहेंगे। लेकिन सूर्य का मकर में प्रवेश उत्तरायण के सापेक्ष आगे बढ़ता जा रहा है । ये बदलाव करीब 70 वर्षों में एक दिन का होता है। इस प्रकार अगले 70 वर्षों में मकर संक्रान्ति एक और दिन आगे बढ़ जाएगी । अब से करीब 1750 वर्ष पूर्व करीब 70 वर्षों के समय अन्तराल तक मकर संक्रान्ति और उत्तरायण एक ही दिन होते थे। तभी ये शायद ये भ्रम प्रचलित हैं कि मकर संक्रान्ति ही उत्तरायण है।

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बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी.