हिन्दी में काल (समय) को ही कल के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। कल बहुत ही विस्मयकारी शब्द है। यह बीता हुआ है अथवा आने वाला।
कल शब्द संस्कृत में कल्य अथवा कल्यम् है, जिसे हिन्दी की ही तरह न तो आगे की सुध है और ना ही पीछे की। संस्कृत भाषा में अन्य कई अर्थों में यह गूङ्गा भी है और बहरा भी। कल्य स्वास्थ्य है कल्य प्रातः काल ऊषा वेला है। यह चतुर भी है और दक्ष भी, तैयार है और फुर्तीला भी, दृढ है और परिपूर्ण भी। स्वीकार्य है और शुभ, मंगल भी। अनुदेशात्मक है और चेतावनीपूर्ण भी।
कल्य शब्द सुन्दर एवं सौम्य के अर्थ में ग्रीक भाषा में κᾰλός कलोस के रूप में है। कल्य का इण्डो-यूरोपीय मूल शब्द सम्भवतः *kal है। कल को विगत तथा आगामी कल के भेद के रूप में प्रस्तुत करने वाले कुछ संस्कृत शब्दों की जानकारी इस आलेख में प्रस्तुत है।
जो बीत गया वह दिन
और बीता हुआ कल है:
- गतदिन
- गतदिनम्
- गतदिवस
- गतदिवसम्
- धर्मवासर
- धर्माह
- पूर्वेद्युस्
- ह्यस्
- ह्यःकृत
- ह्यस्तन
- ह्यस्तनदिन
- ह्यस्त्य गतदिन
- गतदिनम्
- गतदिवस
- गतदिवसम्
- धर्मवासर
- धर्माह
- पूर्वेद्युस्
- ह्यस्
- ह्यःकृत
- ह्यस्तन
- ह्यस्तनदिन
- ह्यस्त्य
गत, जो बीत गया है उसे कहते हैं। यह शौरसेनी प्राकृत में 𑀕𑀬 गय तथा हिन्दी भाषा में ‘गया’ के रूप में आया है। इस शब्द का इण्डो-यूरोपीय मूल शब्द *gʷm̥tós परिकल्पित है।
यहाँ एक महत्वपूर्ण बात है ह्यस् और इससे आरम्भ होने वाले शब्दों की। यह वह हैं जिसका ह्रास होता है (घट जाना), बीता हुआ कल भी घट चुका है अथवा हीन हैं।
ह्यस् एक प्राचीन शब्द है, जिसके समरूप शब्द कई इण्डो-यूरोपीय भाषाओं में पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए:
- ग्रीक: χθές (khthés) ख्थेस;
- लैटिन: hesternus, heri हेस्तरनस्;
- गोथिक: 𐌲𐌹𐍃𐍄𐍂𐌰(𐌳𐌰𐌲𐌹𐍃) gistra (-dagis) गिस्त्रा(दागिस्);
- जर्मन: gëstaron, gestern गऍस्तरॉन/गेस्त्रेन;
- आंग्ल-सेक्सॉन: geostra (गेऑस्त्रा);
- अंग्रेजी: yester (-day) यस्टर (डे), hesternal (हेस्तर्नल — बीते हुए कल से सम्बन्धित)
- डच: gisteren ख़िस्तेरन्
- संस्कृत से :
- कश्मीरी: ईस, थेवा
- पाली भाषा: hiyyo
- सिंहली: ඊයේ (īyē) इये
- दिवेही: އިއްޔެ (iye) इये
- शौरसेनी प्राकृत: 𑀳𑀺𑀚𑁆𑀚𑁄 हिज्जो
- नेपाली: हिजो
- रोमानी: idž, ič, iž, jič, jidž इद्ज़, इच,इज़, जिच,जिद्ज़
हिन्दी भाषा में हमने अपनी विरासत का एक महत्वपूर्ण शब्द खो दिया है। सम्भवतः हम शौरसेनी प्राकृत अथवा नेपाली भाषा के शब्द ‘हिजो’ को अपना कर हिन्दी भाषा को सरल रूप में समृद्ध कर सकते हैं।
ध्यान रहे कि ह से ख, ग आदि ध्वनियों का उद्भव नहीं हो सकता। अतः इन तीनों ध्वनियों के मूल में कोई ऐसी ध्वनि रही होगी जिसके ह्रास से यह सभी ध्वनियाँ बन सके। ह्यस् के इण्डो-यूरोपीय मूल शब्द के रूप में *źʰyás शब्द की परिकल्पना की गई है।
जो बीता हुआ परसों था, वह अधरेद्युस् है, तिरोअह्नम् है।
आने वाला कल है श्वः,
- परेद्यवि
- प्रगे (आने वाले कल की सुबह)
- प्रातर् (आने वाले कल की सुबह के लिए)
- श्वस्
- श्वः
प्रगे और प्रातर् का प्रयोग अंग्रेजी के morrow या डच भाषा के morgen की तरह ही है। इन शब्दों का मूल अर्थ सुबह है।
परेद्यवि का शाब्दिक अर्थ है आने वाला दिवस।
एक अन्य शब्द जो पूर्वेद्यूस् के विलोम अर्थ में प्रयोग करते हैं उत्तरेद्युस् (आने वाला दिवस)।
श्वस् तथा श्वः दोनों का ही एक अन्य अर्थ साँस लेने की प्रक्रिया से है। यह भविष्य और मङ्गल के अर्थ में भी प्रयोग किया जाता है। आह भरना और साँस छोड़ते हुए गले से आवाज निकालना। अतः कुत्ते को श्वान भी कहते हैं। श्वस् का इण्डो-यूरोपीय मूल शब्द सम्भवतः *ḱwes- है। तुलनात्मक रूप से श्वान का मूल *ḱwóns है – यह ग्रीक भाषा में κύων क्वोन् के रूप में आया है।
आने वाला परसों है अपरश्वस्, परश्वस्; अर्थात आने वाले कल के उपरान्त आने वाला दिन, इसी का अपभ्रंश रूप है परसों। इसे तृतीयदिवस भी कहते हैं, प्रथम आज, द्वितीय है आने वाला कल और तृतीय उसके उपरान्त का दिन है।
आज
और आज, अद्य है। इसका आज, अभी, यह दिन, इन दिनों के अर्थों में प्रयोग किया जाता है। अद्य का एक अन्य अर्थ खाने योग्य पदार्थ भी है। अ अर्थात यह तथा द्य अर्थात द्यु अथवा दिवस।
- मागधी प्राकृत के 𑀅𑀬𑁆𑀬 (अय्य) से
- असमिया: আজি (अज़ि)
- बाङ्ला: আজ (अज)
- उडिया: ଆଜି (अजि)
- सिलेहती: ꠀꠁꠎ (अइज)
- महाराष्ट्री प्राकृत के 𑀅𑀚𑁆𑀚 (अज्ज) से
- कोंकणी: आइज
- मराठी: आज
- पाली भाषा: अज्ज
- शौरसेनी प्राकृत के 𑀅𑀚𑁆𑀚 (अज्ज) से
- गुजराती: આજ आज
- मारवाड़ी, हिन्दी, नेपाली: आज
- पञ्जाबी: ਅੱਜ (अज्ज)
- Sindhi: اَڄُ / अॼु
- उर्दू: آج (आज)
अद्भुत है अद्य भी, इसका इण्डो-यूरोपीय मूल शब्द *h₁e-dy-és (*h₁e यह -dy-és दिन) माना गया है। dy-és शब्द दिवस के अर्थ में सभी इण्डो-यूरोपीय भाषाओं में आया है।
द्यु शब्द के अन्य अर्थ हैं; आकाश, स्वर्ग, चमक, प्रकाश, आग।
सन्दर्भ :
प्रथम मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित कल आज और कल (कल आज और कल | अरविन्द व्यास के विचार)
इस प्रकार के अन्य रोचक उत्तर आप मेरे मञ्च भाषा-विज्ञान और शब्द-व्युत्पत्ति (https://bhasa-vijnana-aura-sabda-vyutpatti.quora.com/) पर देख सकते हैं।
© अरविन्द व्यास, सर्वाधिकार सुरक्षित।
इस आलेख को उद्धृत करते हुए इस लेख के लिंक का भी विवरण दें। इस आलेख को कॉपीराइट सूचना के साथ यथावत साझा करने की अनुमति है। कृपया इसे ऐसे स्थान पर साझा न करें जहाँ इसे देखने के लिए शुल्क देना पडे।