“पुनर्वैध” शब्द सही है या गलत ?
क्या इस शब्द में व के ऊपर ऐ की मात्रा के अलावा दूसरी मात्रा चढ सकती है, या फिर यह शब्द ही गलत है ।कृपया इसके बारे मे जानकारी प्रदान करे |
@Suresh_Pant1 जी
कृपया मार्गदर्शन करिये।
इसमें मात्रा की कोई समस्या नहीं है।
पुनर्वैध = पुनर् वैध
इसमें व् पर एक ही मात्रा है. लिखे हुए में भ्रम हो रहा हो तो उच्चारण पर ध्यान दिया जा सकता है।
मात्रा केवल स्वरोंं की होती है , आधा र यदि अलग ढंंग से लिखा जाता है तो वो मात्रा नही कहा जा सकता है . कार्य में र की मात्रा नही है , ये केवल आधे र को दिखाने का तरीका है . जिन वर्णोंं मेँ खडी पाई होती है उनको तो सरलता से आधा लिखा जाता है जिनमें खडी पाई नही होती उनमें हलन्त लगाना पड़ता है जो थोड़ा अधिक काम है। संभवतः इसलिए र का ये रूप प्रचलन में आया है।
मात्रा का अर्थ ऊपर लिखे जाने से ना लें उसके विज्ञान से लें। किस अक्षर को किस वर्ण से व्यक्ति किया जाना है ये लिपि का विषय है , जबकि मात्रा ध्वनि का भी विषय है। जो लिपियाँ मात्राओं को व्यक्त नहीं करती उनसे जुडी भाषाओँ के उच्चारण में भी मात्रा तो होती ही है।
जब व्यंजन के अंत में कोई स्वर जोड़कर बोला जाता है , तो उसे साधारण भाषा में मात्रा कहा जाता है।
व्यञ्जन के बाद व्यञ्जन आने में स्पष्ट दो ध्वनियाँ होती है। जबकि जब व्यञ्जन पर स्वर की मात्रा होती है स्वर की ध्वनि लगभग व्यञ्जन के साथ ही समाहित हो जाती है (यही मात्रा की पहचान है और ये गुण केवल स्वर में है )
जैसे “की” शब्द में क् व्यंजन पर ई स्वर की मात्रा है। लेकिन “कई” शब्द में क् व्यंजन पर अ स्वर की मात्रा है (अ की मात्रा को अलग से व्यक्त नहीं किया जाता बल्कि वो देवनागरी के वर्णो में स्वतः ही होती है और उसको हलन्त लगाकर हटाया जाता है क् ख् ग् इत्यादि मात्रा विहीन शुद्ध व्यञ्जन हैं )
व्यञ्जन का व्यंजन से जुड़ना मात्रा नहीं है। कर्म , क्रम इन दोनों ही शब्दों में प्राकृतिक स्वर अ के अतिरिक्त कोई और मात्रा नहीं है।
कर्म = क र् म
क्रम = क् र म
स्वर यदि अन्य स्वर से जुड़ते हैं मिलकर कोई स्वर ही बन जाता है , इसे संधि कहते हैं।
जैसे कमल + ईश = कमलेश (अ + ई = ए )
इसलिए स्वर पर भी स्वर की मात्रा नहीं होती और ना ही दो स्वरों की मात्रा संभव है , क्योंकि एक साथ बोले जाने वाले दो स्वर सदैव जुड़ जाते हैं और ध्वनियों की संधि होकर एक ही ध्वनि शेष रहती है । और मात्रा का तो अर्थ ही एक साथ बोले जाना है।
तो मात्रा के आधार पर तो पुनर्वैध की शुद्धता की चर्चा करना सही नहीं है। किसी और आधार पर अशुद्धता हो सकती है।
संदीप जी, आपका अभिवादन ।
मैं मात्रा के आधार पर इस शब्द की व्याख्या नहीं पूछ रहा था, वरन् में तो इस शब्द के बारे में पूछ रहा हूँ कि यह शब्द सही है या गलत ।
इसका सही शब्द " पुनःवैध" होगा या फिर " पुनर्वैध" ही सही है ?क्योकि मैनें आज तक वै के ऊपर रेफ को चढ़ते नहीं देखा है, यदि यहाँ पर ’ वे’ होता तो निःसंदेह रेफ ’ वे 'ऊपर चढ़ सकता था किंतु यहा पर वै है | अतः इस संदर्भ मे मेरा मार्गदर्शन कीजिए ।
रेफ के आधार पर इस शब्द को गलत नही कहा जा सकता
पुनःवैध तो हिंदी सम्मत नही प्रतीत होता
आयुर्वैदिक में वै के ऊपर ही रेफ है
यदि आप ‘पुनःवैध’ लिखते हैं, तो इसमें सन्धि के नियमों का प्रयोग नहीं कर रहे अतः यह अशुद्ध है, एक शब्द रूप में पुनर्वैध उचित है। किन्तु आप यदि रेफ का प्रयोग नहीं करना चाहते तो ‘पुनः वैध’ लिखें; यह व्याकरणसम्मत होगा।
शब्द की ही वैधता पर विचार करें तब भी यह एक उचित शब्द है। आप किसी अनुज्ञापत्र, जिसकी सीमित वैधता हो, उसे कुछ और अवधि तक के लिए वैध करवाते हैं। तो आप इस अनुज्ञापत्र को पुनः वैध करवा रहे हैं। आप इसे पुनर्वैध करवाना भी लिख सकते हैं।
एक प्रश्न है , निःशुल्क जैसे शब्दों में तो सन्धि के बाद भी विसर्ग का शेष रहना व्याकरण सम्मत है।
निः उपसर्ग के उपरान्त आनेवाले शब्द यदि किसी ऊष्ण व्यञ्जन श, ष, अथवा स से आरम्भ होते हैं तो संस्कृत भाषा में विसर्ग का शेष रहना देखा जा सकता है। निःश्वास, निःसर्ग, निःश्रेयस्, निःसारण आदि; क्ष से आरम्भ होने वाले शब्दों पर भी यह नियम लागू होना प्रतीत होता है। यथा निःक्षत्रे।
हिन्दी में विसर्ग का लोप होकर आरम्भ के व्यञ्जन को दोहरा कर अथवा बिना दोहराए निश्श्वास / निश्वास, निस्सारण / निसारण आदि लेखन की परम्परा बनी है।