डाक के लिए उचित हिन्दी शब्द

डाक भारतीय मूल का ही देशज शब्द है, इसका मूल प्राकृत भाषा में है। वर्तमान समय में चिट्ठी, पत्र, सन्देश इत्यादि के लिए डाक शब्द का प्रयोग किया जाता है, परन्तु जैसा कि आप इस आलेख में आगे पाएँगे कि इसका अर्थ कुछ और ही है।

‘डाक’ शब्द को अंग्रेज भी अपनी भाषा में ले गए; अंग्रेजी में इसे dawk अथवा dak के रूप में अंगीकार किया गया है। dak (डाक) शब्द की व्युत्पत्ति प्राकृत भाषा के 𑀟𑀓𑁆𑀓 (डक्क) से हुई है। इस शब्द को मेरे विचार से “डीयते नभोमार्गे गच्छतीति । डी + अन्येष्वपीति डः स्त्रियां टाप् + अक वक्रगतौ” के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं; यह वह सन्देश है जिसे नभमार्ग से भेजा गया है — अर्थात वह सन्देश जिसे जोर से चिल्ला कर कहा गया हो।

प्राकृत डक्क (चिल्लाना, जोर से आवाज देना) से कुमाऊँनी में डाकणो (प्रेषण, भेजना, भाषण, झिड़कना , डाँटना, आदि); नेपाली डाकनु (बुलाना, पुकारना, आदि), डाको (ध्वनि, चीख, आदि); असमिया डाकिबा (पुकारना, चिल्लाना), डाका (मुर्गे की बाँग); बांग्ला डाका (पुकारना, बुलाना), डाक (पुकार), डाकिबा (पुकारना, चिल्लाना), डकरा (निमन्त्रण ); मैथिली डाक (पुकार), हिन्दी डाँकना (पुकारना, बुलाना, आवाज़ देना, चिल्लाना), डाक (चीख, पुकार), पश्चिमी पहाड़ी भाषाओँ में डाकणो (पशुओं को हाँकने के लिए लगायी पुकार), डाकनो (बुलाना, पुकारना, आदि); आदि शब्द इसी से बने हैं। डक्क एक प्रकार का ढोल भी है। यह डंका के रूप में भी परिवर्तित हुआ है। अतः डाक मूल रूप से एक मौखिक सन्देश है।

(लगभग १८५० का डाक का परिवहन करने वाले दो डाकवालों का चित्रण किया पोस्टकार्ड। स्रोत : Bombay Photo Images[ Mumbai])

प्राचीन काल में सन्देश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए एक निश्चित दूरी पर चौकियाँ बनाई जाती थीं; इनमें एक चौकी से दूसरी चौकी तक सन्देश पहुँचाने के लिए कभी पुकार कर तो कभी किसी हरकारे को भेज कर सन्देश पहुँचाये जाते थे; इस क्रिया को भी डाकना कहते थे; इन चौकियों पर लगाई सन्देश की पुकार डाक तथा इन चौकियों को भी डाक कहा जाने लगा। कुमाऊँनी भाषा में इस प्रकार की चौकियों के लिए डाक शब्द अब भी प्रयोग करते हैं। पंजाबी, कश्मीरी (डाख) , हिन्दी, आदि में डाक शब्द का (लिखित) सन्देश, सन्देशवहन, सन्देशवाहक आदि के अर्थों में प्रयोग करते हैं।

कई बार यह सन्देश सार्वजनिक होता था। ऐसी स्थिति में सन्देशवाहक किसी सार्वजनिक स्थान पर ढोल-नगाड़े बजाकर जनसाधारण को एकत्रित कर उन्हें यह सन्देश सुनाते थे। इस प्रकार के ढोल को डक्क, डाँक, अथवा डंका भी कहा जाने लगा।

चूँकि प्रत्येक अवस्था में सन्देशवाहक सन्देश को ऊँची आवाज़ में बोलकर सुनाते थे; यह सन्देश भी डाक ही कहलाता था।

भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य के समय से सन्देशवहन प्रणाली के प्रमाण मिलते हैं। मध्यकाल में शेरशाह सूरी ने प्राचीन उत्तरापथ का पुनरुद्धार कर अपने सम्राज्य के लिए हरकारों तथा घुड़सवारों पर आधारित डाक सेवा आरम्भ की। कोस मीनारें इन संदेशवाहकों के परिवर्तन तथा विश्राम स्थानों के रूप में भी विकसित की गईं थी।

हिन्दी शब्दसागर के अनुसार डाक :

१ सवारी का ऐसा प्रबंध जिसमें एक एक टिकान पर बराबर जानवर आदि बदले जाते हों । घोड़े गाड़ी आदि का जगह जगह इंतजाम । (टिप्पणी — यह अर्थ सम्भवतः चौकी के रूप में प्रयुक्त है, जहाँ सन्देशवाहक विश्राम करते थे; अथवा यह सन्देश एक से दूसरे सन्देशवाहक को हस्तान्तरित किए जाते थे।)

^२ संज्ञा स्त्री॰ [अनु॰] धमन । उलटी । कै । क्रि॰ प्र॰— होना ।

^३ संज्ञा पुं॰ [अं॰ डॉक (Dock)] समुद्र के किनारे जहाज ठहरने का वह स्थान जहाँ मुसाफिर या माल चढ़ाने उतारने के लिये बाँध या चबूतरे आदि बने होते हैं ।

^४ संज्ञा पुं॰ [बंग॰ डाकना( = चिल्लाना)] नीलाम की वोली । नीलाम की वस्तु लेनेवालों की पुकार जिसके द्वारा वे दाम लगाते हैं ।

इस डाक से बना डाका (मूल अर्थ कूदना, घेरना), तथा ऐसा करने वाला व्यक्ति डाकू, डाकी। वमन, कै, उलटी आदि तथा ‘बहुत खानेवाला’ अथवा पेटू व्यक्ति भी डाकी कहलाये। कहीं-कहीं डाकिया भी डाकी कहलाता है।
डाक के लिए हिन्दी भाषा के अन्य उपयुक्त शब्दों में कुछ शब्द यह हैं :—

पुकारने के अर्थ में — बुलावा, पुकार, आमन्त्रण, न्यौता, आह्वान, आदि

ध्वनि करने वाले यन्त्र के रूप में — डक्क, डंका, डाँक, आदि

सन्देश के अर्थ में — आख्यायनी, दूत्य, दौत्य, संवदन, संदेश, तथा सम्प्रेष्य

लिखित सन्देश के अर्थ में — पत्र, चिट्ठी, पत्री, खत

पार्सल के अर्थ में — पोटली, पोटलक, तथा वरण्ड उचित हिन्दी शब्द हैं।
डाकनी अथवा डाकिनी का भी डाक शब्द से सम्बन्ध है; कश्मीरी डा॑गिन्, हिंदी/पंजाबी डाइन, डैन, मराठी डाइणी आदि इसी से सम्बन्धी शब्द हैं। पुरानी हिन्दी भाषा में डाकिनी को डक्क भी कहा गया है।

© अरविन्द व्यास, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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