जो घी से भरपूर, वह घेवर

सावन आए और घेवर न आए, यह कम से कम उत्तर भारत में तो सम्भव नहीं है। घेवर, सावन का विशेष मिष्ठान्न माना जाता है। श्रीकृष्ण को समर्पित होने वाले ५६ भोगों में घेवर का भी स्थान है। घी से भरपूर होने के कारण संस्कृत में इसे “घृतपूर” कहा गया है। व्युत्पत्ति है, "घृतेन पूर्य्यते इति घृतपूरः।" आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार पिष्टपूर, घृतवर, घार्त्तिक भी इसके पर्याय हैं। इनमें घृतवर से घेवर की व्युत्पत्ति अधिक निकट लगती है, घृतवर > घेवर। गुजराती में घेबर (घ्यारी, घारी भी), मराठी में घेवर/घीवर, सिन्धी घीउरू, बांग्ला घ्योर आदि घेवर के ही नाम हैं।

घेवर

अपने आराध्य गिरधर गोपाल का प्रिय होने के कारण मीराबाई भी सुवा से अनुरोध करती हैं:

बोल सूवा राम राम बोलै तो बलि जाऊँ रे।
सार सोना की सल्या मगाऊँ, सूवा पीजरो बणाऊँ रे।
पीँजरा री डोरी सुवा, हाथ सूँ हलाऊँ रे।
कंचन कोटि महल सुवा, मालीया बणाऊँ रे।
मालीया मैं आई सुवा, मोतिया बधाऊँ रे।
जावतरी केतकी तेरै, बाग मैं लगाऊँ रे।
पलारी डार सुवा, पींजरो बधाऊँ रे।
घृत घेवर सोलमा - लापसी परसाऊँ रे।
आमला को रस सुवा, घोलि घोलि प्याऊँ रे।

सावन में सारे उत्तर भारत के बाज़ारों में घेवर छा जाता है। गलियाँ महकने लगती हैं। शायद ही कोई मिठाईवाला हो जो घेवर न रखता हो। यह लोक संस्कृति से भी जुड़ा है। तीज से लेकर रक्षाबन्धन तक शायद ही कोई त्यौहार हो जिसमें घेवर का आदान-प्रदान न होता हो। बहू के मायके से उसके ससुराल वालों को घेवर भेजे जाने की प्रथा है। विवाह सगाई आदि रस्मों में घेवर की उपस्थिति अनिवार्य होती थी।

नई पीढ़ी में इसे कम पसन्द किया जाता है किन्तु खाने को मिल जाए तो वे भी इसके स्वाद की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते। इसे स्वीट डिश या पुडिंग के तौर पर अपनाने वालों ने इसके शहद जैसे स्वाद और मधुमक्खी के छत्ते जैसी आकृति के कारण इसका अंग्रेजी नामकरण कर दिया है- “हनीकूम डिज़र्ट”। कहीं-कहीं, विशेषकर कट्टर शाकाहारी परिवारों में, जन्मदिन के अवसर पर केक के बदले घेवर का उपयोग भी देखा गया है।

नई परिपाटी में आज घेवर का रूप, आकार और स्वाद भी परिवर्तित होने लगा है। ग्राहकों की रुचि के अनुसार चीनी, घी की मात्रा भी घटाई-बढ़ाई जाने लगी है। अपने नाम से भिन्न “घी रहित” खस्ता घेवर भी बनने लगा है। कहते हैं पुराने समय में घेवर की आकृति बारह इञ्च तक भी होती थी, किन्तु अब घटकर कुछ इञ्च तक सिमट आया है।

घेवर में प्रयुक्त होने वाली मूल्यवान सामग्री मेवा, केसर, घी तथा आकर्षक स्वाद और गार्निशिंग आदि के कारण बाज़ार में बहुत महँगा घेवर भी मिलता है जिसका मूल्य दो-ढाई हज़ार रुपए प्रति किलो हो सकता है। सामान्य उपभोक्ता के लिए चार-पाँच सौ से लेकर हजार-बारह सौ रुपए प्रति किलो का घेवर उपलब्ध है। जो जैसा दाम लगाने में सक्षम हो उसे उसी प्रकार का घेवर मिल जाता है। सादा घेवर सस्ता है जबकि पिस्ता, बादाम और मावे वाला महँगा। पिस्ता, बादाम और मावे वाला घेवर अधिक प्रचलित हैं, यद्यपि लोगों का कहना है कि जितना आनन्द सादे घेवर में है उतना मेवे-मावे वाले घेवर में नहीं।

तो खाइए घेवर और मनाइए सावन। अच्छा हो मधुमेह वाले अपने चिकित्सक से परामर्श कर लें।

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