आदरसूचक जी अव्यय लिंग-वचन निरपेक्ष है। इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है।
संस्कृत [ जीव (√जीव् + क) = जिव्व, जिव ] -> प्राकृत [ जी ] -> हिन्दी [ जीउ ], राजस्थानी [ जू ] -> कुमाउँनी [ ज्यू ], नेपाली [ जू ]
जी का वाक्य प्रयोग कई प्रकार से किया जाता है।
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नाम, उपनाम के साथ स्वतंत्र रूप से: नरेश जी, माता जी, नेता जी
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कुछ रिश्तों के साथ (सन्दर्भ देते हुए) जोड़कर: मेरे पिताजी, जया की माताजी।
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कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों के साथ जुड़कर (विकल्प से) गांधीजी, रामजी
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किसी के नाम का अंग हो तो उसी के साथ जुड़कर: किशनजी दुबे, रामजी वर्मा
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स्वीकृति, अस्वीकृति, आश्चर्य, निषेध, प्रश्न सूचक अव्यय के रूप में: जी, जी!, हाँ जी, नहीं जी, जी नहीं।
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जी? क्यों जी? जी, क्या कहा?
सुना तो यह था कि “जी” सम्माननीयों के साथ लगाया जाता है। पर उस दिन भ्रमित हो गए जब एक माँ बेटे को बुलाती हुई कह रही थी, “बेटा जी, ट्यूशन वाला मास्टर आ गया। खेलना छोड़ो, घर आओ।” बेटा जी अच्छा कहकर लौट तो आया पर उसका जी खेल में ही रहा और मास्टर जी कहते रहे, “जी लगाकर पढ़ा करो।”