जयन्ती-जन्मोत्सव

त्यौहारों के समय भाषा के प्रति हमारी जिज्ञासा अधिक सचेत, सजग हो जाती है। बातें छोटी होती हैं लेकिन नए-नए आयाम जोड़ दिए जाते हैं। दिवाली कहें या दीवाली, रमजान या रमादान, व्रत या उपवास, नवरात्र या नवरात्रि, जयन्ती या जन्मोत्सव? ताजा बहस हनुमान जी की जयन्ती को लेकर है कि इसे जयन्ती कहना ठीक है या जन्मोत्सव।

यों तो प्रत्येक शब्द के साथ एक या एक से अधिक अर्थ संकल्पनाएँ जुड़ी होती हैं फिर भी प्रसङ्ग और प्रयोग के अनुसार अर्थ भिन्नता होती है। एक ही शब्द भिन्न सन्दर्भों में भिन्न अर्थ देता है। जहाँ तक जयन्ती शब्द का सम्बन्ध है, इसकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा की धातु √जि (जीतना, उन्नति करना) से है। जिसका अर्थ है विजय करनेवाली, विजयिनी। इसीलिए दुर्गा का एक नाम जयन्ती है।

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते॥

रथों, मन्दिरों पर फहरने वाली ध्वजा भी जयन्ती (जीत दिलाने वाली) है। कुछ शुभ और उपयोगी वनस्पतियों का नाम जयन्ती है। वैजयन्ती, विजया, जया परस्पर पर्याय हैं।

जन्मदिन को वर्षग्रन्थि या वर्षगाँठ भी कहा जाता है। ‘वर्षगाँठ’ से उत्तररामचरित की यह पंक्ति याद आती है

वत्से देवयजनसम्भवे सीते! अद्य खल्वायुष्मतोः कुशलवयोः द्वादशस्य जन्मवत्सरस्य संख्यामङ्गलग्रन्थिः अभिवर्तते।

वर्ष पूरा होने पर मनाई जाने वाली वर्षगाँठ ही जयन्ती, जन्मदिन, जन्मदिवस है। देवी-देवता के अवतरण या प्राकट्य दिवस को जयन्ती कहा जाता है। उसे उत्सव के रूप में मनाएँ तो जन्मोत्सव भी कहा जा सकता है। इधर कुछ वर्षों से परम्परा सी बन गई है कि दिवङ्गत व्यक्ति के जन्मदिनको ही जयन्ती कहें। जबकि व्यवहार में ऐसा नहीं है। जीवित व्यक्ति की भी २५-वीं वर्षगाँठ रजत जयन्ती, ५९-वीं स्वर्णजयन्ती और ७५-वीं हीरक जयन्ती मनाई जाती है! जन्म-जयन्ती कहना अनावश्यक दुहराव है।

जयन्ती विवाद पर एक बात और। हिन्दी भाषियों के लिए जो श्रीकृष्ण जयन्ती जन्माष्टमी या श्रीकृष्णाष्टमी है, वह तमिल भाषियों के लिए श्रीजयन्ती है। इसी से समझा जा सकता है कि यह प्रयोग कितना पुराना है।

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यदि आप जैसे विद्वान हमें हिन्दी पढ़ाते तो हिन्दी की दुर्दशा नहीं होती।