जंग (rust) के लिए संस्कृत भाषा से विकल्प

अयःकिट्ट — (धातूनां / लोहधातूनां मले : धातु का कचरा)

अयोमल (धातु का कचरा मल)

किट्ट (धातूनां मले :slight_smile:

किट्टाल (लौहमले मेदिनि)

कृष्णचूर्ण (लौहमलम् इति राजनिर्घण्टः)

पात्रटीर (सिंघाने — यह शब्द धातु के पात्रों के लिए भी प्रयोग किया जाता है)

मण्डूर (मण्डूरम्, क्ली, पुं, लौहमलम् । ततपर्य्यायः । शिङ्घाणम् २ । इत्यमरः । २ । ९ । ९८ ॥ सिंहानं ३ । सिंहाणं ४ । मण्डते लोहं वेष्टते अग्निदाहे लोहाद्विभजते वा मण्डयति भूषयति औषधत्वाद्रोगिणमिति वा मण्डूरं कि मडि भूषे मडि ङ विभागे वेष्टे नाम्नीति ऊरः । इति तट्टीकायां भरतः ॥ — यह मुख्यतः आयुर्वेदिक औषधियों में धातुओं को भस्म कर बनाया जाता है। )

रीति (क्षरणे अमरः; लौहकिट्टे, मेदिनि)

लोष्ट (लौहमले राजनिर्घण्टः)

लोहकिट्ट ( “ध्मायमानस्य लोहस्य मलं मण्डूरमुच्यते । लोहसिंहानिका किट्टी सिंहाङ्गञ्च निगद्यते ॥ यल्लोहं यद्गुणं प्रोक्तं तत्किट्टमपि तद्गुणम् ॥” इति भावप्रकाशः ॥)

लोहचूर्ण (लोहमले राजनिर्घण्टः) तद्भव रूप लोहचूर भी इस अर्थ में प्रयोग होता है।

लोहज (लोहजम्, क्ली, (लोहात् जायते इति । जन् + डः ।) लोहकिट्टम् । इति राजनिर्घण्टः ॥)

लोहमल (लोहे का मैल)

लोहरजस् (लोहे की धूली)

लोहसिंहानिका (rust)

लौहज (लोहज की वृद्धि से — लौहजम्, क्ली, (लौहात् जायते इति । जन् + डः ।) मण्डूरम् । इति रत्नमाला )

लौहमल (लौहमल¦ लोहकिट्टे राजनिर्घण्टः)

विप्लव (दर्पण पर आई जंग)

शिङ्घाण (शिङ्घाणम्, क्ली, (शिङ्घ + आणकः । पृषोदरादित्वात् कलोपः । इत्युणादिवृत्तौ उज्ज्वलदत्तः । ३ । ८३ ।) काचपत्रम् । लोहमलम् । नासिकामलम् । इति मेदिनी ॥ — तद्भव रूप शिक्नि)

शूलघातन (शूलघातनम्, क्ली, (शूलं तद्रोगं घातयतीति । हन + णिच् + ल्युः ।) मण्डूरम् । इति शब्दचन्द्रिका ॥)

सरण (सरणम्, क्ली, (सरतीति । सृ गतौ + “जुचङ्क्रम्य- दन्द्रम्यसृगृधीति ।” ३ । २ । १५० । इति युच् ।) लोहमलम् । इति हेमचन्द्रः ॥ )

सिंहाण (सिंहाणम्, क्ली, लौहमलम् । इत्यमरटीका । २ । १ । ९८ ॥)

सिङ्घाण (शिङ्घाण का ही अन्य रूप)

फ़ारसी का ज़ंग (زنگ) मेरे विचार में संस्कृत शिङ्घाण से सम्बंधित शब्द हो सकता है। यह जंग (جنگ) से सम्बन्धित शब्द नहीं है - यह शब्द संस्कृत की हन धातु से सम्बन्ध रखता है।

हिंदी में एक अन्य शब्द मोरचा (مورْچَہ) यह फारसी में युद्ध, चींटी, आदि अर्थों में है।

सम्भवतः जिस प्रकार चींटियाँ पङ्क्तिबद्ध होकर चलती हैं; उसी से यह शब्द युद्धरत होने के लिए प्रयोग होता है। और जिस प्रकार चीटियों के आकार के धब्बे धातुओं पर बनते हैं उससे ज़ंग को भी मोरचा कहते हैं। मोरचा का जंग और ज़ंग से यह अद्भुत संगम है।

© अरविन्द व्यास, सर्वाधिकार सुरक्षित।

इस आलेख को उद्धृत करते हुए इस लेख के लिंक का भी विवरण दें। इस आलेख को कॉपीराइट सूचना के साथ यथावत साझा करने की अनुमति है। कृपया इसे ऐसे स्थान पर साझा न करें जहाँ इसे देखने के लिए शुल्क देना पडे़।

2 Likes

यहाँ पर उल्लिखित अंकों का क्या तात्पर्य है?

यह अमरकोश में खंड, अध्याय, तथा सूत्र की क्रम संख्या है।

इनमे मंडूर को ही मैं अधिक प्रचलित मानता हूँ . प्रमुख आयुर्वैदिक उत्पाद इसका प्रयोग करते हैं
image

1 Like