क्या हिन्दी एक अपेक्षाकृत नई भाषा है

हिन्दी तुलनात्मक रूप से नई भाषा नहीं है। हाँ, हिन्दी का मानकीकृत स्वरूप अवश्य नया है। इस आलेख में हिन्दी भाषा के संक्षिप्त इतिहास के साथ, हिन्दी के विकास की अंग्रेजी के विकास से तुलना की गई है; मात्र यह बताने के लिए कि हमारी दूसरी सर्वाधिक परिचित भाषा अंग्रेजी भी लगभग हिन्दी के समान आयु वाली है।


अधिकांश विद्वानों के मत में हिन्दी साहित्य का इतिहास लगभग 1200 ईस्वी से आरम्भ होता है। अतः यह 800 वर्ष का तो है ही। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी का इतिहास दसवीं शताब्दी से आरम्भ होना मानते हैं; तो इस प्रकार हिन्दी भाषा एक हजार वर्ष प्राचीन मानी जा सकती है।

ध्यान दें किभारत की सीमाओं पर 712 ईस्वी में पहली बार क्रमबद्ध रूप से आक्रमण आरम्भ हुए; इसी के साथ भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी सीमावर्ती प्रदेशों में संघर्ष की स्थिति बनी रही। हिन्दी साहित्य के कुछ विद्वान, यथा अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, इस काल से ही अपभ्रंशों में वीरगाथाओं की रचनाओं के काल का सूत्रपात होना मानते हैं। इस काल में पश्चिमी (शौरसेनी) अपभ्रंश में धीरे-धीरे फ़ारसी तथा अरबी के शब्दों का समावेश होना आरम्भ हो गया; तथा शौरसेनी अपभ्रंश से हिन्दी का विकास होने लगा। इस प्रकार हिन्दी का प्रारूप लगभग 1300 वर्षों पूर्व से बनना आरम्भ हो गया था।

तुलना के लिए अंग्रेजी भाषा का मानकीकृत रूप लगभग, जिसे आधुनिक अंग्रेजी कहते हैं, सत्रहवीं शताब्दी में अस्तित्व में आया। मध्ययुगीन अंग्रेजी ग्यारहवीं शताब्दी में नोर्मन विजय के उपरान्त विकसित हुई। अंग्रेजी का प्राचीनतम स्वरूप पाँचवी शताब्दी में विभिन्न जर्मानिक बोलियों के समावेश के रूप में हुआ। अतः हिन्दी को हम अंग्रेजी भाषा की तुलना में बहुत अधिक नई नहीं कह सकते।

इस्लामी शक्तियाँ एक सङ्गठित धर्म के रूप में बौद्ध धर्म से परिचित थीं; क्योंकि बौद्ध धर्म का प्रसार क्षेत्र फ़ारस के प्रभाव वाले मध्य एशिया में भी था। अतः, उनका सबसे बड़ा सुसङ्गठित शत्रु बौद्ध धर्म ही चिह्नित किया गया; एवं बौद्ध धर्म के शिक्षण तथा प्रज्ञा प्रसार के केन्द्रों को सुनियोजित रूप से ध्वस्त कर बौद्ध धर्म की शक्ति का विनाश किया गया। हिन्दी भाषा के आदिकाल में बौद्ध मत के सिद्धों, जैन मुनियों, और नाथ सम्प्रदाय के जोगियों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है।

सौभाग्यवश, इस समय भारत-भूमि पर भक्ति-आन्दोलन की चेतना का प्रसार होने लगा था। इस आन्दोलन से अनेक विचारकों ने पश्चिमी भारत में राजस्थान से लेकर पूर्वी भारत में बंगाल तक अवहट्ट में काव्य रच अपनी विचारधारा को जनजन तक पहुँचाया। यह अवहट्ट ही भारतीय जनमानस में उसी प्रकार समाया जैसे सम्राट अशोक के काल में पालिभाषा का प्रसार होकर भारत का सांस्कृतिक एकीकरण होने लगा था। हिन्दी का आधार भी इसी अवहट्ट में है; जिसे एक बहुत बड़े भौगोलिक क्षेत्र में जनाधार मिला था।

भारत में इस्लामी संस्कृति के साथ ही सूफीमत भी आया। इस मत में भक्ति आन्दोलन से एक समानता रही; यह भी सङ्गीत के माध्यम से न केवल अपने ईश्वर से स्नेह को व्यक्त करते अपितु जनमानस में भी सङ्गीत के माध्यम से अपना सन्देश पहुँचाते। इससे जनसाधारण में भी कुछ विदेशी शब्दों से मिलकर बनी पुरानी हिन्दी का प्रसार होना आरम्भ हो गया। अतः एक ओर से भक्ति आन्दोलन तो दूसरी ओर से सूफी संगीत ने हिन्दी का जनाधार बनाया।

किन्तु, इसमें एक समस्या थी; हिन्दी जनभाषा तो थी, किन्तु, राजभाषा नहीं। अतः हिन्दी अनेक बोलियों का समूह थी; जिसका कोई मानकीकृत रूप नहीं था। यहाँ अंग्रेज़ों ने अपने लिए बाबुओं की फौज का निर्माण करने को इन जनभाषाओं का मानकीकरण आरम्भ किया। इस काल में जनभाषाओं से न केवल देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी अपितु नस्तलीक़ लिपि में लिखी उर्दू का दो स्वतन्त्र मानकीकृत रूपों में विकास हुआ।

यह मानकीकृत रूप नया होने से ऐसा भ्रम हो जाता है कि हिन्दी एक नई भाषा है। किन्तु, हिन्दी के मानकीकरण से पूर्व ही अनेक मिलती-जुलती बोलियों के विस्तृत सतत भौगोलिक प्रसार और जनाधार के रहते मानकीकृत हिन्दी को भारत में जनाधार बनाने में कोई कठिनाई नहीं हुई। क्योंकि इससे मिलती-जुलती बोलियाँ तो बहुत बड़े भूभाग में बोली जाती रही हैं।


अंग्रेजी से हिन्दी की तुलना करनी है तो कुछ तुलनात्मक उदाहरण प्रस्तुत हैं।

यह 1066 में लिखा एंग्लो-सेक्सॉन क्रॉनिकल्स से यह गद्यांश पढिए :—

An. M.LXVI. On þyssum geare man halgode þet mynster æt Westmynstre on Cyldamæsse dæg 7 se cyng Eadward forðferde on Twelfts mæsse æfen 7 hine mann bebyrgede on Twelftan mæssedæg innan þære niwa halgodre circean on Westmyntre 7 Harold eorl feng to Englalandes cynerice swa swa se cyng hit him geuðe 7 eac men hine þærto gecuron 7 wæs gebletsod to cynge on Twelftan mæssedæg 7 þa ylcan geare þe he cyng wæs he for ut mid sciphere togeanes Willelme … 7 þa hwile com Willelm eorl upp æt Hestingan on Sce Michaeles mæssedæg 7 Harold com norðan 7 him wið gefeaht ear þan þe his here com eall 7 þær he feoll 7 his twægen gebroðra Gyrð 7 Leofwine and Willelm þis land geeode 7 com to Westmynstre 7 Ealdred arceb hine to cynge gehalgode 7 menn guldon him gyld 7 gislas sealdon 7 syððan heora land bohtan.

— The Anglo-Saxon Chronicle (1066)

(चित्र स्रोत है : File:Peterborough.Chronicle.firstpage.jpg - Wikimedia Commons )

इस अंग्रेजी के कितने शब्दों को पहचान पाते हैं?

अब इस काल से पूर्व की (संवत 900 के उपरान्त की) पुरानी हिन्दी को पढिए :—

नगर बाहिरे डोंबी तोहरि कुड़ियाछइ।
छोइ जाइ सो बाह्म नाड़िया।
आलो डोंबि! तोए सम करिब म साँग।
निघिण कण्ह कपाली जोइलाग।
एक्क सो पदमा चौषट्टि पाखुड़ी।
तहि चढ़ि नाचअ डोंबी बापुड़ी।
हालो डोंबी! तो पुछमि सदभावे।
अइससि जासि डोंबी काहरि नावे

गंगा जउँना माझे रे बहइ नाई।
ताहि बुड़िलि मातंगि पोइआ लीले पार करेइ।
बाहतु डोंबी, बाहलो डोंबी बाट त भइल उछारा।
सद्गुरु पाअ पए जाइब पुणु जिणउरा।

— सिद्ध कण्हपा (कृष्णाचार्य)

(चित स्रोत : Kanhapa (Krishnacharya): The “Dark Siddha” - Abhayadatta Sri - Google Arts & Culture )

सिद्ध कण्हप्पा तान्त्रिक वज्रायण बौद्ध मत को मानते थे; तथा वे नाथ सम्प्रदाय के जोगी जलन्धर नाथ के भी शिष्य रहे। बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्रों का विनाश किए जाने से इस काल की अनेक रचनाएँ विनष्ट हुईं। इनमें से कुछ बचाकर भोटदेश (तिब्बत) पहुँचाई गई। जिनमें से कुछ महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन खोज कर भारत लाए। इनकी भाषा को अपभ्रंश भी कहते हैं। जो अर्ध-मागधी प्राकृत से विकसित हुई प्रतीत होती है।

इस काल की हिन्दी का रूप तो हम कुछ-कुछ समझ पाते हैं, वस्तुतः यह पूर्वी भारतीय क्षेत्र की भाषा है, जो बंगाली, ओड़िया, मैथिली, आदि की पूर्वज भाषा है।

किन्तु उस काल की अंग्रेजी समझ पाना अंग्रेजों के लिए भी बहुत कठिन है।


अब मध्यकालीन तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी की अंग्रेजी और हिन्दी भाषा के रूप को निहार लें।

SIÞEN þe sege and þe assaut watz sesed at Troye,
þe bor3 brittened and brent to bronde3 and askez,
þe tulk þat þe trammes of tresoun þer wro3t
Watz tried for his tricherie, þe trewest on erþe:
Hit watz Ennias þe athel, and his highe kynde,
þat siþen depreced prouinces, and patrounes bicome
Welne3e of al þe wele in þe west iles.
Fro riche Romulus to Rome ricchis hym swyþe,
With gret bobbaunce þat bur3e he biges vpon fyrst,
And neuenes hit his aune nome, as hit now hat;
Ticius to Tuskan and teldes bigynnes,
Langaberde in Lumbardie lyftes vp homes,
And fer ouer þe French flod Felix Brutus
On mony bonkkes ful brode Bretayn he settez wyth wynne,
Where werre and wrake and wonder
Bi syþez hatz wont þerinne,
And oft boþe blysse and blunder
Ful skete hatz skyfted synne. — Gawain & the Green Knight (गवैन और हरा घुड़सवार योद्धा चौदहवीं शताब्दी)

यह अंग्रेजी भी कठिन है।

इससे कुछ समय पूर्व की हिन्दी पर दृष्टिपात करें, अमीर खुसरो तो फ़ारसी भाषा में पारङ्गत थे; किन्तु, हिन्दी भाषा में भी लिखते थे। इसे हिन्दवी का नाम भी दिया। किन्तु, क्या यह नाम देने से ही इसे हम एक भिन्न भाषा कह दें?

उज्जल बरन, अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है, निपट पाप की खान।
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पीउ को, दोउ भए एक रंग।
गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारै केस।
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस।

— अमीर खुसरो (तेरहवीं शताब्दी)

चौदहवीं शताब्दी के हिन्दी भाषा के कवि विद्यापति की एक रचना का रसास्वादन करें, इनकी भाषा में विदेशज शब्दों का प्रयोग अपेक्षाकृत कम है :—

नन्दनक नन्दन कदम्बक तरु तर, धिरे-धिरे मुरलि बजाब।
समय संकेत निकेतन बइसल, बेरि-बेरि बोलि पठाव।।
साभरि, तोहरा लागि अनुखन विकल मुरारि।
जमुनाक तिर उपवन उदवेगल, फिरि फिरि ततहि निहारि।।
गोरस बेचरा अबइत जाइत, जनि-जनि पुछ बनमारि।
तोंहे मतिमान, सुमति मधुसूदन, वचन सुनह किछु मोरा।
भनइ विद्यापति सुन बरजौवति, बन्दह नन्द किसोरा।।

— विद्यापति (चौदहवीं शताब्दी)

विद्यापति की भाषा को अवहट्ट भी कहते हैं। किन्तु यह भी हिन्दी का ही एक रूप है।


सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में विलियम शेक्सपीयर (1564-1616) ने आरम्भिक आधुनिक अंग्रेजी काल का सूत्रपात किया।

Actus Quartus. Scena Prima.

Enter Rosalind, and Celia, and Iaques.

Iaq.
I prethee, pretty youth, let me better acquainted with thee.

Ros.
They say you are a melancholly fellow.

Iaq.
I am so: I doe loue it better then laughing.

Ros.
Those that are in extremity of either, are abhominable fellowes, and betray themselues to euery moderne censure, worse then drunkards.

Iaq.
Why, 'tis good to be sad and say nothing.

Ros.
Why then 'tis good to be a poste.

Iaq.
I haue neither the Schollers melancholy, which is emulation: nor the Musitians, which is fantasticall; nor the Courtiers, which is proud: nor the Souldiers, which is ambitious: nor the Lawiers, which is politick: nor the Ladies, which is nice: nor the Louers, which is all these: but it is a melancholy of mine owne, compounded of many simples, extracted from many obiects, and indeed the sundrie contemplation of my trauells, in which by often rumination, wraps me in a most humorous sadnesse.

Ros.
A Traueller: by my faith you haue great reason to be sad: I feare you haue sold your owne Lands, to see other mens; then to haue seene much, and to haue nothing, is to haue rich eyes and poore hands.

— William Shakespeare, (As you like it)

शेक्सपीयर की भाषा आधुनिक अंग्रेजी भाषा का आधार बनाती है। किन्तु, इसका स्वरूप आधुनिक अंग्रेजी से उतना ही भिन्न है, जितना आधुनिक हिन्दी से इनके समकालीन रीतिकाल के कवि केशवदास (1555–1617) का; हिन्दी साहित्य के ‘उडुगन’ कहे जाने वाले इन्हीं केशवदास की एक कविता प्रस्तुत है :—

एक भूत में होत, भूत भज पंचभूत भ्रम।
अनिल-अंबु-आकास, अवनि ह्वै जाति आगि सम॥
पंथ थकित मद मुकित, सुखित सर सिंधुर जोवत।
काकोदर करि कोस, उदरतर केहरि सोवत॥

पिय प्रबल जीव इहि विधि अबल, सकल विकल जलथल रहत।
तजि ‘केसवदास’ उदास मग, जेठ मास जेठहिं कहत॥

— केशवदास

इस काल में हम हिन्दी और अंग्रेजी का वह स्वरूप देखते हैं जो हमारे परिचित स्वरूप के निकट का है।

एक बहुत ही सुन्दर बात जिसने हिन्दी को जीवित रखा और बहुत बडे क्षेत्र तक उसकी पहचान को बनाए रखने में सहायक हुई; वह विभिन्न धर्मों के प्रचारकों ने हिन्दी की बोलियों को अपना कर पद्य और संगीत के माध्यम से इसे जनसाधारण तक पहुँचाया और भारतीय संस्कृति को जोड़ कर रखा।

उन्नीसवीं शताब्दी से हिन्दी में बडे स्तर पर गद्य लेखन की परम्परा बनी; और तब अनेक लोकप्रिय लेखकों ने हिन्दी को आगे बढाया। यह हमारी आधुनिक हिन्दी कही जा सकती है। इसमें हिन्दी और नागरी प्रचारिणी सभाओं का भी अथक योगदान रहा है।

भाषा एक सतत बहती हुई नदी है; जिसके प्रवाह में परिवर्तन होते रहने का नैसर्गिक गुण है। हिन्दी भी इस प्रवाह में परिवर्तित हुई है।


© अरविन्द व्यास, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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अद्भुत :clap:t4: :clap:t4: @Arvind_Vyas जी आपने हिन्दी भाषा के इतिहास के साथ उसके साहित्य का इतिहास भी बहुत सरल शब्दों में समझाया है।

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