क्या संस्कृत में कम्प्यूटर सबसे बेहतर चलता है?

संस्कृत को कम्प्यूटर ये लिए सबसे उपयुक्त भाषा बताने का भ्रम बन्द होना चाहिए। यदि ऐसे दावों में सत्यता होती या इसका कुछ खास लाभ होता तो विश्व स्तर पर इसका प्रयोग हो रहा होता। कम्प्यूटर भाषा का मनुष्यों की भाषाओं से कोई विशेष लेना देना नहीं है। जहाँ पर अँग्रेजी का प्रयोग हो रहा है वहाँ तो संस्कृत क्या विश्व की कोई भी भाषा प्रयोग में आ सकती है , इसमें कोई भाषा विशेष नहीं है और कोई भाषा कम नहीं है।

कम्प्यूटर को दिए जाने वाले आदेश ऊपर से अँग्रेजी (या किसी प्राकृतिक भाषा) में होते हैं जिनको किसी भी अन्य भाषा में परिवर्तित जा सकता है। लेकिन अन्ततः वो आदेश कम्प्यूटर की भाषा में लिखे क्रमादेशों या प्रोग्रामों से जुड़े होते हैं।

कम्प्यूटर भाषाओं की व्याकरण गणितीय होती हैं और एकदम सटीक होती है, जरा सा बदलाव और अर्थ समझने लायक नहीं रहता या तो अर्थ बदल जाता है। क्रमादेशन भाषा ( प्रोग्रामिक भाषा ) की एक पंक्ति की तुलना गणित के एक समीकरण से हो सकती है। जैसे गणित में प्रयोग होने वाले सभी संकेतों के अर्थ स्पष्ट होते हैं इसी प्रकार कम्प्यूटर भाषा के संकेत भी होते हैं।जबकि मनुष्यों को भाषाओं के नियम उतने स्पष्ट नहीं होते। मानव भाषाओं में प्रयोग होने वाले वाक्यों में बहुधा सन्दर्भ होते हैं और सन्दर्भ के अनुसार अर्थ बदल जाते हैं। कम्प्यूटर की भाषाएँ सन्दर्भ रहित होती है और एक वाक्य केवल एक ही स्पष्ट अर्थ होता है।

ये बात सही है कि मनुष्यों की भाषाओं में संस्कृत में व्याकरण ही सबसे स्पष्ट और सटीक है ये एक वैज्ञानिक भाषा भी है। और भारतीय गणितज्ञ और वैज्ञानिक इसका ही प्रयोग करते रहे हैं। यह भी बात सही है कि भारत में व्याकरण, विशेषकर संस्कृत व्याकरण, एक वैज्ञानिक विषय रहा है, जबकि शेष विश्व में ये मात्र के विषय ही रहा है। पाणिनि का लिखा हुआ संस्कृत व्याकरण विश्व भर में ही खूब सम्मानित है और करीब २५०० वर्षों से वही संस्कृत व्याकरण प्रचलित है। भाषा विज्ञान की ये उत्कृष्ट कृति है।


कम्प्यूटर के लिए संस्कृत को सबसे उपयुक्त भाषा कहने का भ्रम कहाँ से आरम्भ हुआ कहा नहीं जा सकता।

1956 में जॉन बैकस नाम के वैज्ञानिक ने कम्प्यूटर भाषा के प्रारूप निर्धारित किये इनको बैकस-नार-प्रारूप भी कहा जाता है । इन नियमों के आधार पर जॉन बैकस ने ही FORTRON नाम की क्रमादेशन भाषा (प्रोग्रामिंग भाषा ) भी विकसित की। इन नियमो की तुलना पाणिनि के संस्कृत व्याकरण के नियमों से होती हैं। इसलिए ये प्रस्ताव भी रखा गया कि इसको पाणिनि-बैकस-प्रारूप कहा जाए। यही प्रस्ताव इस भ्रम का कारण बने होंगे । पाणिनि के नियम अद्भुद हैं और वैज्ञानिक हैं , इन्ही के जैसे नियम कम्प्यूटर भाषा विकसित करने के लिए भी प्रयोग किए गए लेकिन संस्कृत का प्रयोग कम्प्यूटर में क्रमादेशन भाषा (या प्रोग्रामिंग भाषा) के तौर पर नहीं हो रहा है। लेकिन यहाँ तुलना व्याकरण के नियमों की है भाषा की नहीं है।


क्या नासा संस्कृत का प्रयोग करता है ?

नासा के एक वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स (Rick Briggs) की ओर से 1985 में The AI Magazine नामक पत्रिका में एक लेख प्रकाशित हुआ था , “संस्कृत में जानकारी की अभिव्यक्ति और कृत्रिम बुद्धि” (Knowledge Representation in Sanskrit and Artificial Intelligence)

इसमें उन्होंने केवल इतना विश्लेषण किया था कि संस्कृत में जानकारी को कैसे व्यक्त किया जाता है और ये कैसे अंग्रेजी और यूरोपीय भाषाओं से भिन्न है । उन्होंने ये संभावना भी जताई कि संस्कृत का कृत्रिम भाषा के स्थान के स्थान पर भी उपयोग हो सकता है। इस काम में तब से कोई प्रगति नहीं हुई है। पर हम तो संस्कृत का नाम क्या दिखा बस उछल पड़े कि नासा में संस्कृत का प्रयोग हो रहा है। अरे कम से कम इस काम को ही कुछ आगे बढ़ा देते।

संस्कृत को कम्प्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा नहीं कहा जाता है, न ही नासा संस्कृत का उपयोग करता है।

ऐसा नहीं है हम कुछ भी बड़ाई करें और लोग मानने को तैयार बैठे है। इस प्रकार सस्ती प्रशंसाएँ हमें हास्य का पात्र बनाती है। हमे गंभीर परिश्रम से अपना महत्व विश्व स्तर पर सिद्ध करना है न कि प्रशंसाएँ करके। भाषा से प्रेम का अर्थ झूठी प्रशंसा नहीं होता। संस्कृत से प्रेम है संस्कृत सीखें , श्रम करें , और जो प्रशंसनीय उसकी प्रशंसा करें।


कल यदि संस्कृत भाषा का प्रयोग कम्प्यूटर में होने भी लगा तो इसका अर्थ केवल उतना ही होगा जितना आज अंग्रेजी के प्रयोग होने का है। ये संस्कृत की कोई विशेष योग्यता नहीं होगी। क्या किसी ने अंग्रेजी को कम्प्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा कहा है ?

या संस्कृत में टंकण इत्यादि हो पाना भी कोई विशेषता नहीं है , विश्व की हर भाषा में टंकण हो रहा है। क्रमादेशन या कोडिंग में कुछ प्रयोग तो आज भी किसी भी भाषा का हो सकता है .


सम्पादन १२ नवम्बर २०२१

वैसे इस उत्तर का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है लेकिन सामुराई झक्कास जी के संदर्भ साझा कर रहा हूँ जिनमे इस प्रकार के झूठे वक्तव्य दिए गए हैं जो दुःखद है। मुझे भी संस्कृत और संस्कृति से विशेष लगाव है उसे समझने के लिए मैं श्रम करता हूँ झूठी प्रशंसा नहीं करता।