कहानी पतरौल शब्द की

वनविभाग में एक बहुत छोटा पद होता है वनरक्षक। भ्रामक नाम है क्योंकि जब वनों की नियति लाभार्थियों के लिए कटना-उजड़ना बन गई हो तो बेचारा वनरक्षक कैसे रक्षा कर लेगा।

अँग्रेजों के समय में उत्तराखण्ड में वन सम्पत्ति बहुत हुआ करती थी जिसका दोहन अँग्रेजों ने खूब किया। “स्थानीय लोगों से वनों की रक्षा” के लिए वनरक्षक नियुक्त किए जाते थे।

वनरक्षक के दो नाम हुआ करते थे - फॉरेस्ट गार्ड और फॉरेस्ट पेट्रॉल। पहाड़ में पेट्रॉल को “पतरौल” कहा जाने लगा। अँग्रेज सा’ब पुराने पेड़ कटवाकर कोयला बनवाते और पतरौल ग्रामीणों की दराँती-कुल्हाड़ी छीनकर उन्हें दैनिक आवश्यकताओं के लिए घास-पात भी नहीं काटने देता था।

फसकाट

पतरौल के लिए दूसरा प्रचलित नाम था “फसकाट” या “फौसकाट”। फॉरेस्ट गार्ड के फसकाट बनने की कहानी बड़ी रोचक है।

गार्ड साब को निर्जन घने जंगलों में घूम-घूमकर रखवाली करनी होती। कभी-कभी तो कई दिनों तक किसी मनुष्य नाम के प्राणी से बात तक न हो पाती। इस मानसिक दबाव के चलते कभी कोई भूला-भटका राहगीर मिल जाए तो थोड़ी देर फसक (गप्प) हो जाती। इससे गार्ड को भी चैन मिलता। समझदार ग्रामीण उसे अपनी फसक-बातों में उलझाकर अपने काम भर की घास, लकड़ियाँ काटकर ले आते। महिलाएँ अपनी मीठी बातों में उलझाने का काम अधिक निपुणता से कर लेतीं। तो फॉरेस्ट गार्ड के लिए कहीं-कहीं नया शब्द अस्तित्व में आया “फसकाट” (फसक + काट, अर्थात जो फसक मारने गपशप करने) के बाद वन के उत्पादों को काटने दे। फसक के लिए कहीं-कहीं फौस मारना भी है। जिसे बातों में उलझाकर वन से घास, लकड़ी आदि पाई जा सके वह कहलाया फसकाट या फौसकाट।

उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में नहरों के पानी का हिसाब रखने वाले भी पतरौल कहलाते हैं। यहाँ पतरौल साहब किसान की सींच वसूलने का काम करते थे। इनकी नियुक्ति सिंचाई विभाग में होती थी। किसान को इनकी लिखी सींच=सिंचाई का कर हर हाल में देना होता था। एक समय गाँवों में वसूली के कारण इनका डर रहता था।