कल के बाद परसों और उसके बाद, और उसके बाद? क्या ये परसों आदि नाम हिंदी भाषा के हैं?

कल के बाद आता है परसों, यह भी हिन्दी भाषा का ही शब्द है। और जो इनके उपरान्त आते हैं वह भी; इन सभी शब्दों का उद्गम संस्कृत भाषा में खोजा जा सकता है।

और उसके उपरान्त; पुरानी हिन्दी फिल्मों के गीत बहुत शिक्षाप्रद होते हैं। जैसा कि आनन्द बख्शी जी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत के माध्यम से आशा भोंसले और किशोर कुमार के मुख में अपने शब्द डाल दिए हैं :—

अच्छा तो हम चलते हैं

फिर कब मिलोगे

जब तुम कहोगे

कल मिलो या परसों

परसों नहीं नरसों …

आने वाला कल संस्कृत भाषा में श्वः कहलाता है। उसके उपरान्त (अपर, पर) आता है अपरश्वः अथवा परश्वः जिसका रूप हिन्दी में परसों हो गया है।

इससे बना पालि भाषा का परसुवे जो हिन्दी, पंजाबी, आदि में परसों, परसूँ में परिणत हुआ है; गढ़वाली में परस्यो; नेपाली में परसी; असमिया में पर्हुइ, परहि; बंगाली में परसु; मराठी में परव्हाँ, परवाँ; जैसे रूपों मे यह शब्द बदल कर आया।

परश्व में एक और (अन्य) दिन जोड़ लें; तो यह बन जाता है अन्यपरश्वः; जिसे नेपाली में निपरसी; और हिन्दी भाषा में नरसों कहते हैं।

एक दिन और जोड़ लें संस्कृत में चत्वारश्वः तो यह हिन्दी में चार-सों और परसों-नरसों से लय मिला कर चरसों बन जाता है।

हिन्दी में एक शब्द और सुनने को मिलता है तरसों। यह संस्कृत के आत्रिश्वः / इतरश्वः (श्वः — आने वाला कल आत्रि — उससे भिन्न अथवा इतर — उससे आगे; अर्थात आने वाला वह दिन जो आने वाला कल नहीं उससे भिन्न अथवा इतर दिन है। जो तरसों हो गया है।


हिन्दी भाषा में काल भेद नहीं करते; अतः कल, परसों, नरसों, चरसों, तरसों यह शब्द आज से इसी क्रम में घटते-बढ़ते हैं; जिस प्रकार संख्या रेखा में शून्य से -1, -2, -3… तथा 1,2,3… घटते-बढ़ते हैं; इसे आप एक दिन पहले/बाद, दो दिन पहले/बाद, बहुत दिन पहले/बाद के रूप में समझें। तरसों के तरसे हुए तरसों के आगे-पीछे बरसों ही गिनते हैं।

© अरविन्द व्यास, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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परसों नरसों का तो बहूत उपयोग किया है किन्तु तरसों शब्द का यह अर्थ अभी पता चला है। चरसों के बारे में सुना भी नहीं था।

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