आमूलचूल शब्द का क्या अर्थ होता है?

आइए सर्वप्रथम मूल शब्द का अर्थ समझने का प्रयास करते हैं। वैसे तो मूल के अनेक अर्थ होते हैं। जैसे - एक नक्षत्र विशेष का नाम, किसी पौधे या वृक्ष की जड़, किसी बात का आरम्भ, किसी शब्द का वह रूप जिसके अन्य टुकड़े या भाग न हो सकें।

अब मूल शब्द के लिए यदि मनुष्य / प्राणी की बात करें तो - मूल / आरम्भिक / शरीर का सबसे निचला भाग अर्थात् पैर या चरण।

किन्तु यहाँ शब्द आया है आमूल, तो स्पष्ट किया जाता है कि - आङ् /आ संस्कृत और हिन्दी का एक उपसर्ग है और उपसर्ग का कार्य होता है किसी भी मूल शब्द से पहले जुड़कर उसके अर्थ में कुछ अथवा पूर्ण रूप से परिवर्तन ला देना।

:point_right: यहाँ पर … मूल ही मूल शब्द है जिसके पहले “आ” उपसर्ग आकर संलग्न हुआ है।

आ उपसर्ग दो भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है।

  • से लेकर
  • तक या पर्यन्त

कहने का तात्पर्य यह है कि जो आ उपसर्ग है, वास्तव में स्वयं में ही विपरीत अर्थ लिए हुए होता है और दोनों ही अर्थ स्वीकार किए जाते हैं!

उदाहरण के तौर पर मैं कुछ शब्द देती हूँ जैसे–

  • आ + जन्म = आजन्म, शब्द हुआ… जिसका अर्थ हुआ जन्म से लेकर
  • आ + जीवन = आजीवन, अर्थ हुआ… जीवन भर या जीवन पर्यन्त
  • आ + समुद्र = आसमुद्र, अर्थ हुआ… समुद्र पर्यन्त
  • आ + हिमालय = आहिमालय, अर्थ हुआ… हिमालय से लेकर

इसी तरह बना है… आ + मूल = आमूल, जिसका अर्थ हुआ — मूल या जड़ से लेकर

अन्य अर्थ यह भी समझा जा सकता है कि - किसी सिद्धांत या बात के आरंभिक स्थिति से लेकर।


अब हमें … चूल शब्द के अर्थ को जानने की आवश्यकता है!

चूल वास्तव में संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ है-- केश

प्रायः यह शब्द एक संस्कार के रूप में भी प्रयुक्त होता है जिसका नाम है चूलाकर्म अथवा चूड़ाकर्म

यहाँ पर चूल और चूडा दोनों एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। अत: इसका अर्थ होता है शिखा, केश का शिखर भाग तक।

अब शिखा क्या है? केशों का आरम्भ गर्दन के आसपास से ही शुरू हो जाता है और आगे की ओर माथे से केशों का उगना शुरू होता है। किन्तु सिर का जो मध्य भाग होता है उस स्थान को चूड़ / चूड़ा अथवा चूल कहा जाता है।

प्रायः कुछ कर्मकांडी अथवा ब्राह्मण लोग सिर पर शिखा रखते हैं जिसे आप चूल बोला या चूड़ा भी कह सकते हैं। कई संस्कृत ग्रंथों में इससे संयुक्त शब्द आए हैं जैसे चन्द्रचूड़ (शिव) आदि।

अर्थ स्पष्ट होने के बाद मैं यह कह सकती हूँ कि–

जब यही चूल शब्द आमूल के साथ आता है तो पूर्व में आए “आ” उपसर्ग की अन्विति हो जाती है अर्थात उसे चूल में भी जुड़ा होने का बोध होता है और तब इस विशेष शब्द का विशेष अर्थ होता है।

  • आमूलचूल अर्थात जड़ से लेकर शिखा तक, पैर से लेकर शिखा तक (मनुष्य के भाव में)
  • अन्य वस्तुओं के भाव में - आरम्भ से लेकर अन्त तक, आरम्भिक बिन्दु अथवा चरण से लेकर अन्तिम छोर तक, निम्नतम बिन्दु से लेकर उच्चतम बिन्दु तक।

अर्थात एक बार आ उपसर्ग का अर्थ हुआ “से लेकर” दूसरी बार आ उपसर्ग का अर्थ होगा “तक या पर्यन्त”। पूरे शब्द में उपसर्ग एक ही बार जुड़ता है किन्तु उसका भाव दो बार ग्रहण होता है।

चूल शब्द का प्रयोग प्रायः आमूल शब्द के साथ ही प्रयुक्त होता है। जैसे - “आमूलचूल परिवर्तन”।

जिसका सीधा और स्पष्ट अर्थ होता है कि किसी भी व्यक्ति, वस्तु अथवा कार्य व्यापार में पूरी तरह से / आरम्भ से लेकर अन्त तक / आद्योपान्त परिवर्तन किया जाना… परिवर्तित होना… बदल जाना… इत्यादि।

अमरकोश में भी आमूलचूल का ऐसा ही अर्थ बताया गया है।

:pray::pray:

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सूपनखा को वर्तमान मेँ भ्रमवश लोग यह व्युत्तपत्ति देते हैँ कि जिसके सूप जैसे नाखून थे वह सूपनखा थी परन्तु उसका यह नाम एक अपभ्रन्श है उसका वास्तविक नाम तो “स्परणखा” था जिसक अर्थ थ सु (अर्थात् सिर से) पर्णखा (अर्थात् पैर के नाखून तक) अर्थात जो सिर से लेकर पैर तक एक आद्वितीय सुन्दरी थी वह सुपणखा थी। सुपर्णखा का सन्दर्भ यहाँ इसलिये उचित है क्योँकि आमूलचूल भी लगभग यही सीमाएँ बना रहा है किसी परिवर्तन के होने की। सोचा यह उदाहरण दे दूँ।

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