अमरकोश के २ वर्ष

अमरकोश का अनावरण विक्रम सम्वत् २०७७ के श्रावण मास के दूसरे सोमवार को हुआ था। आज भी श्रावण मास का दूसरा सोमवार है अतः अमरकोश के २ वर्ष पूरे हो गए हैं। इन २ वर्षों में अमरकोश ने एक लम्बी यात्रा के लिए अपने पाँव दृढ़ता के साथ जमा लिए हैं। आरम्भ केवल हिन्दी एवं अँग्रेजी दो भाषाओं के साथ हुआ था किन्तु समय के साथ धीरे-धीरे और भाषाएँ जुड़ती गईं।

अनावरण अमरकोश.भारत वेबसाइट से हुआ था किन्तु कालान्तर में जैसे-जैसे नई भाषाएँ जुड़ती गईं, प्रत्येक भारतीय भाषा के लिए एक अलग वेबसाइट का भी प्रादुर्भाव हुआ और साथ में एक एंड्रॉयड एप भी आया। आज ९ भाषाओं की सेवा में ८ वेबसाइट कार्यरत हैं।

भारत में हिन्दी भाषियों की बहुलता है तो मेरी अपेक्षा थी कि अमरकोश की वेबसाइटों पर सबसे ज्यादा हिन्दी के शब्दों को ही देखा जाएगा। किन्तु आश्चर्यजनक रूप से अमरकोश पर मराठी सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा है और हिन्दी उससे बहुत पीछे है। अमरकोश पर विभिन्न भाषाओं की भागीदारी निम्न चित्र में दर्शाई गई है।

रेखा-चित्र १:- भाषानुसार भागीदारी

इस विसङ्गति के दो मुख्य कारण हो सकते हैं।

  • एक इण्टरनेट पर मराठी के लिए उच्च गुणवत्ता वाले अपेक्षाकृत कम शब्दकोशों की उपलब्धता।
  • दूसरा हिन्दी भाषियों का अपनी भाषा के प्रति वैराग्य।

सत्रानुसार आँकड़े

पाठकों की शब्दकोश में रुचि भी भाषाओं के अनुसार भिन्न-भिन्न है। मराठी एवं तेलुगु शब्दकोश के पाठक एक सत्र में औसतन ढाई से तीन पृष्ठों को देखते हैं। कन्नड़ एवं उड़िया भाषी दो पृष्ठों से थोड़ा अधिक। बाकी सभी भाषाओं में औसत पृष्ठ दृष्य प्रति सत्र सवा से डेढ़ के बीच में हैं। विशेष रुप से हिन्दी भाषियों की शब्दकोश में अभिरुचि कम होना एक आश्चर्यजनक विषय है। इसे हम पिछले खण्ड में उल्लिखित अमरकोश में हिन्दी भाषियों की कम भागीदारी के साथ भी जोड़ कर देख सकते हैं। सम्भवतः हिन्दी भाषी अपनी भाषा से विमुख हैं तथा अँग्रेजी की मृग मरीचिका में फंसे हुए हैं।

रेखा-चित्र २:- प्रति सत्र पृष्ठ दृष्य

वार अनुसार आँकड़े

सामान्यतः सप्ताह के प्रत्येक दिन पाठकों की रुचि शब्दकोश में समान होती है। रविवार के दिन थोड़ा कम लोग आते हैं लेकिन बहुत बड़ा अन्तर नहीं होता है रविवार एवं अन्य दिनों में। किन्तु यह बात तेलुगु भाषियों पर लागू नहीं होती है। उनका व्यवहार अन्य भाषियों से बिल्कुल भिन्न है। तेलुगु भाषी शब्दकोश का सर्वाधिक पठन-पाठन रविवार को करते हैं। और उसके बाद धीरे-धीरे उनकी शब्दकोश में रूचि कम होती जाती है शनिवार आते आते कोई इक्का-दुक्का तेलुगु भाषी ही दृष्टिगोचर होता है। एक सप्ताह में देखे गए कुल पृष्ठों का दैनिक वितरण निम्न चित्र में दिखाया गया है।

रेखा-चित्र ३:- सप्ताह के दिन की भागीदारी

तेलुगू भाषियों का यह व्यवहार बिल्कुल विस्मयकारी है। यदि किसी के पास इस तेलुगु गुत्थी को सुलझाने का कोई उपाय हो तो अवश्य बताएँ।

पाठकों के उपकरणोँ से सम्बन्धित आँकड़े

भारत एक मोबाइल फोन बहुल देश है। अधिकांश भारतवासी इण्टरनेट का उपयोग अपने फोन से करते हैं एवं बड़े आकार के कम्प्यूटरों की घुसपैठ कम है। अमरकोश के ९६% से अधिक पाठक मोबाइल फोन का उपयोग हैं शेष कम्प्यूटरों एवं टेबलेट का। मोबाइल फोन पर भी एंड्रॉयड का बोलबाला है केवल ३% पाठक आईफोन का उपयोग करते हैं।

जैसा कि नीचे दिए गए चित्र से प्रत्यक्ष है पाठकों के उपकरण की भाषा मुख्यतः अँग्रेजी होती है। सम्भवतः लोग अपने उपकरण के साथ आए भाषा के डिफॉल्ट विकल्प को ही अपना लेते हैं। कोई विरला ही होता है जो कि अपने उपकरण का उपयोग अपनी मातृ भाषा में करता है।

रेखा-चित्र ४:- उपकरण की भाषा

भारत की अधिकांश आधुनिक लिपियाँ ब्राह्मी लिपि से जनित हैं। उनमें मुख्यतः अक्षरों की आकृति का भेद है। अतः एक लिपि को जानने वाला दूसरी लिपियों को बड़ी ही सरलता के साथ सीख सकता है। तमिल लिपि इसका एक अपवाद है वह ब्राह्मी से जनित होने के उपरान्त भी अन्य लिपियों से थोड़ा भिन्न है।

रेखा-चित्र ५:-अमरकोश की भाषाएँ

आने वाले में समय में भाषाओं के लिप्यन्त्रण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा ताकि भारतवासी अधिकाधिक भारतीय लिपियों तथा भाषाओं को सरलता से पढ़ एवं समझ सकें।

लेख को यहाँ तक पढ़ने के लिए आभार। यदि आपके पास अमरकोश को उपयोगी एवं उत्कृष्ट बनाने के लिए सुझाव हों तो अवश्य बताएँ :pray:t4:

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हिन्दी भाषियों का समझ में नहीं आ रहा है कि उनका रवैया ऐसा क्यों है।

इसके दो कारण हो सकते हैं :

1- हिन्दी के कई कोश उपलब्ध हैं।

2- हिन्दी भाषी अब अन्य भाषाओं में अधिक रुचि दिखने लगे हैं।

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हिंदी भाषा को गम्भीरता से सीख रहे लोग कम हैं .
तमिळ लिपि भले ही ब्रह्मी से जनित ना हो लेकिन सीखना उतना ही सरल है . सिद्धांत तो देवनागरी वाले ही हैं अर्थात वर्ण और मात्राएँ . मैंने पंद्र्ह दिनो में तमिळ लिपि सीख ली थी

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तमिऴ लिपि ब्राह्मी से ही जनित है सन्दीप; तथा सम्भवतः इस लिपि में चिह्नों का स्वरूप ब्राह्मी लिपि के मूल चिह्नों के रूप से अन्य भारतीय भाषाओं से अधिक निकट का है।
किन्तु तमिऴ भाषा के अपने ही कुछ उच्चारण सम्बन्धी नियम हैं; जिससे उन्होंने संस्कृत वर्णमाला क्रम के ही निकट रहते हुए कुछ अक्षरों के चिह्नों को हटाया और कुछ को जोड़ दिया है। स्वरों में ए तथा ओ के ह्रस्व रूपों को जोड़ना उल्लेखनीय है। वहीं खगघ, छझ, ठडढ, थदध, फबभ आदि का प्रयोग तमिऴ लिपि में नहीं होता। ज को मूलतः संस्कृत भाषा में व्युत्पन्न शब्दों के लिए रखा गया है।

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@Arvind_Vyas जी सीखते समय तो यही लगा था कि तमिळ लिपि भी देवनागरी सिद्धांत का प्रयोग करती है . लेकिन @विनोद जी ने लिखा तो उस पर मैंने कोई छानबीन नही की .
कखगघ के लिए एक ही वर्ण है पर सभी उच्चारण प्रचलित हैं .
तमिळ कखगघ के स्थान पर केवल क वर्ण का प्रयोग होने से कोई कडल (अर्थात समुद्र ) को गडल भी पढ सकता है . एक ही शब्द के एक से अधिक उच्चारण प्रचलित होते हैं .

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@Arvind_Vyas जी आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं तमिल भी ब्राह्मी लिपि से ही जनित है। मैं उसके अक्षर विन्यास के कारण थोड़ा भ्रमित था।

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