अनुल्लंघनीय और अनुलंघनीय में क्या शुद्ध ,क्या अर्थ और प्रयोग:—
उत्तर—
पहले इस शब्द का संधि- विग्रह करके इसके मूल शब्द और उसके अर्थ को समझा जाए—
अनुल्लंघनीय——
अन्,+ उत् (उपसर्ग) +लंघन(मूल शब्द) +ईय
उपसर्गों, मूल शब्द एवं प्रत्यय का अलग-अलग अर्थ देखें—
अन्=नहीं
उत्=ऊपर
लंघन =लांघना, ऊपर से निकल जाना, आगे निकल जाना|
ईय =योग्य, होना चाहिए
अब इन सभी को पुनः संधि करके एक शब्द बनने की प्रक्रिया को समझते हैं—
अन् के न् में कोई स्वर नहीं है इसलिए उसके बाद आने वाले उत् का उ मात्रा के रूप में जुड़ गया|
उत् के त् के बाद लंघन के ल के आने से व्यंजन संधि का एक नियम लागू हुआ, जिसके अनुसार यदि त् के बाद ल आया हो तो, पहले आया हुआ त्, ल् में परिवर्तित हो जाता है|
उदाहरण= उत्+लेख =उल्लेख
उत् +लास =उल्लास आदि |
सूत्र-- तोर्लि (पाणिनीय अष्टाध्यायी) इस सूत्र द्वारा इस नियम का विधान होता है|
अब शब्द बना— अनुल्लंघन
पुनः अनुल्लंघन में ईय प्रत्यय जुड़कर बना—
अनुल्लंघनीय
अर्थ होगा— जिसे लांघ सकना असंभव हो/जो अवहेलना या उपेक्षा योग्य न हो/ जिसके आगे न जाया जा सके!
• यहाँ यह बात ध्यान देने वाली है कि–
प्रत्यय के जुड़ने पर संधि का नियम नहीं लगता!
अन्यथा—
अ+ई =ए, जो कि गुण स्वर संधि का नियम है, लागू होता तो—
समाज+ इक=सामाजिक न हो कर सामाजेक आदि बनता… पर ऐसा नहीं होता!
अब बात करते हैं— अनुलंघनीय की|
जैसा विश्लेषण ऊपर बताया गया है कि —
उत् के त् का ल् होता है… तो आधा ल् आना ही आना है!
क्योंकि उ अकेला उपसर्ग नहीं होता… तो उत् के त् का ल् ल के साथ आना ज़रूरी है!
अत: यह सिद्ध हुआ कि अनुलंघनीय शब्द व्याकरण की कसौटी पर शुद्ध नहीं , अतः यह अशुद्ध है|
अब वाक्य-प्रयोग–
• गुरुओं की आज्ञा अनुल्लंघनीय होती है|
• कैलाश पर्वत-शिखर अनुल्लंघनीय है|
• सामने एक अनुल्लंघनीय नाला पड़ा|