ऋ का उच्चारण : मराठी उच्चारण सही है, हिन्दी उच्चारण सही है, या कुछ और ही है?

ऋ के उच्चारण के विषय में बहुत सी भ्रांतियाँ और प्रश्न प्रचलित हैं। ऋ के ये सभी प्रचलित उच्चारण गलत हैं :- री , र्रि, र्रू, रिरि, रुर, रिर

अमृत को अम्रित या अम्रत कहना उतना ही गलत है जितना अम्रुत कहना ।

यहाँ तक कि एक सरकारी स्कूल के हिन्दी शिक्षक को ये कहते भी सुना है कि पृथ्वी के प के नीचे र लगा है (वस्तुतः ये स्वर ऋ की मात्रा है )। ये शिक्षक की गलती ना होकर हमारे समाज में हिन्दी भाषा की शिक्षा और देवनागरी की शिक्षा की कमी का परिणाम है।

ऋ के उच्चारण में दो बाते ध्यान देने योग्य हैं।

१. ऋ मूर्धन्य ध्वनि है

मूर्धन्य वर्ण वे हैं जिनके उच्चारण का स्थान मूर्धा है। जैसे ट ठ ड ढ र मूर्धन्य हैं। इस बात पर तो प्रचलित उच्चारण ठीक हैं। लेकिन अगला बिन्दु महत्त्वपूर्ण है।

२. ऋ एक स्वर ध्वनि है। स्वर ध्वनि की विशेषता है कि उसको कितनी भी देर तक बोला जाये, पूरे अन्तराल में एक ही स्वर ध्वनि आती है।

उदाहरण के लिए, पहले एक व्यञ्जन क को देखते है। अगर आप क ध्वनि की लम्बा खींच कर देर तक बोलते हैं तो अन्त में केवल अ ध्वनि ही आती है, क धवनि नहीं। हर व्यञ्जन के अन्त में अ ध्वनि ही आती है। अब स्वर ई को लम्बा खींचकर देर तक बोलें, आरम्भ से अन्त तक हर भाग में ई ध्वनि ही रहेगी। इस बात की पुष्टि ई ध्वनि को रिकार्ड करके, फिर रिकार्डिंग को आधा काट कर भी की जा सकती है। ये प्रयोग मैं स्वयं कर भी चुका हूँ। एक गायक जब गाता है तो स्वर ही लम्बे खीँचे जाते हैं। मेरे देश की धरती गाने को सुनकर भी ये प्रयोग किया जा सकता है।

स्वर की मात्रा जब व्यञ्जन पर लगती है तो मिलकर लगभग एक ही ध्वनि हो जाती है। जैसे का, कि, कू इत्यादि उनके बीच कहाँ पर व्यञ्जन ध्वनि समाप्त हुई और कहाँ स्वर ध्वनि आरम्भ हुई ये अन्तर लगभग समाप्त ही हो जाता है।

लेकिन दो व्यञ्जन इतने अच्छे से नहीं मिल पाते हैं। क्रम में क् और र मिलकर एक नहीं होते। इस गुण के कारण ही स्वर ध्वनियों का प्रयोग व्यञ्जनों पर मात्रा के लिए भी हो पाता है। जब ऋ का प्रयोग मात्रा की तरह से हो तो इसी प्रकार अन्तर्मिलन हो।

ऋ के सही उच्चारण में स्वर ध्वनियों की ये विशेषताएँ होनी चाहिए। प्रचलित हिन्दी उच्चारण र्रि (या प्रचलित मराठी उच्चारण र्रू ) में यह विशेषता नहीं है।

र एक व्यञ्जन है, एक स्वर धवनि व्यञ्जन पर आधारित नहीं हो सकती। जिस भाषा और लिपि के उच्चारणों में इतनी वैज्ञानिकता हो, उनमें ऐसी गलतियाँ तो नहीं हो सकती कि व्यञ्जन ध्वनि को स्वर कह दिया जाए।


ऋ का सही उच्चारण उपरोक्त दोनो बातों को सन्तुष्ट करेगा।

ऋ का कोई भी प्रचलित उच्चारण इन बातों को सन्तुष्ट नहीं करता है। इसलिए हिन्दी के कई लेखकों ने यहाँ तक लिख दिया कि यह उच्चारण लुप्त हो चुका है और अब इसकी जानकारी ही नहीं है।

लेकिन कुछ लेखक हैं जिन्होंने ऐसा उच्चारण समझाया है जो इन दोनों बातों को सन्तुष्ट करे। लेखक-श्रीपाद दामोदर सातवेलकर जी ने “संस्कृत स्वयं शिक्षक” पुस्तक में ऋ के सही उच्चारण करने का सरल तरीका समझाया है, जो इस प्रकार है।

ऋ के सही उच्चारण का प्रयास करने लिए धर्म शब्द को कम गति से बोलें। धर्म में र उच्चारण के बाद और म उच्चारण से पहले आने वाली स्वर ध्वनि ही ऋ की ध्वनि है। सुनने में ये मूर्धन्य अ जैसी है। अब ऋ का स्वतन्त्र उच्चारण करें, ध्यान रहे कि र या रि की ध्वनि न हो।

मैं इस उच्चारण को रिकार्ड करके उपलब्ध कराने का भी प्रयास करूँगा। मात्रा के तौर पर भी इसका सही उच्चारण सम्भव है। जिनका मैंने पर्याप्त अभ्यास भी किया है।


एक ही स्थान से उच्चारण के कारण, ऋ का र से सम्बन्ध अवश्य है।

अ + ऋ की अगर सन्धि होती है तो र् बन जाता है (रि या रु नहीं )

कृष्ण + ऋद्धि = कृष्‍णर्द्धि

ग्रीष्म + ऋतुः = ग्रीष्मर्तुः

उपरोक्त सभी (स्वर , मूर्धन्य , सन्धि आदि ) तर्कों के आधार पर मेरा मानना है कि श्रीपाद दामोदर सातवेलकर द्वारा की गई उच्चारण की व्याख्या सही है।

ऋ का दीर्घ ॠ है। ॠ का उच्चारण भी ऋ को थोड़ा अधिक खीचकर होता है जैसा हम इ-ई या उ-ऊ के लिए करते हैं।


चूँकि ऋ स्वर है इसलिए व्यञ्जन के साथ इसके योग को, अन्य स्वरों की तरह ही साधारण भाषा में, मात्रा कहा जाना चाहिए। पृ ==> प पर ऋ की मात्रा , मृ = म पर ऋ की मात्रा इत्यादि।

2 Likes

उच्चारण रिकॉर्डिंग अवश्य ही ऋ की ध्वनि के संशय को दूर करने में सहायक सिद्ध होगी।

1 Like

जी, ये काम भी लिया जाएगा।
बहुत से उच्चारण हैं जिनमें भ्रम है।