'तत्त्व मुक्ता' शब्द का आशय एवं विस्तार

'तत्त्व मुक्ता ’ से क्या आशय है?

तत्त्व का अर्थ है — सार (Element) मूल रूप से होने का भाव।

तत् = वह (अमुक)

त्व = होने का भाव

अर्थात् किसी भी वस्तु (सजीव अथवा निर्जीव) के निर्माण में समाहित सामग्री, तथ्य, सत्व, होने का विवरण।

और

मुक्ता का अर्थ है — मोती ( Pearl)

अत:

तत्त्व-मुक्ता का अर्थ हुआ — तत्त्व रूपी मोती।

अब सवाल उठता है कि किसका तत्त्व…? कौन सा तत्त्व…?

तो उत्तर रूप में यह कहा जा सकता है—-

इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी व्यक्त अथवा अव्यक्त रूप में बिखरा पड़ा है, उन सबके अस्तित्व में कुछ तत्त्व समाहित हैं! अर्थात् उन सभी के जन्म अथवा निर्माण में जो वस्तु / सामग्री / आधार / सार / मूल निहित होता है / प्रयुक्त होता है / समाहित होता है अथवा लगा हुआ होता है, वास्तव में वही उसका तत्त्व कहलाता है।

इसकी पुष्टि में मैं कुछ उदाहरण देने का प्रयास करती हूँ… . जैसे—

किस का-------------तत्त्व


आत्मा — परमात्मा, जीवात्मा

ईश्वर— निर्दोषत्व, सामर्थ्य

अन्तरिक्ष — रिक्त स्थान, सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, अन्य ग्रह- उपग्रह, नक्षत्र, आकाशगङ्गाएँ, वायु, गैसें, आदि-आदि

सृष्टि — जलवायु

शरीर — क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर

काव्य — शब्द और भाव

समृद्धि — धन, स्वर्ण, रजत, माणिक्य, भूमि, जन, शस्य आदि

सुख — स्वास्थ्य, सम्मान, वंशवृद्धि आदि

चेतन — श्वांस, चलत्व, बुद्धि-विवेकत्व आदि

हृदय — गति, सरसता, प्रेम आदि

गृह — दम्पति, सन्तति, सौमनस्यता

पुरुष — बल, बुद्धि, साहस, परमार्थ, ओजस्विता

स्त्री — बुद्धि, रूप, कला, कोमलता, मधुरता, धैर्य, सेवाभाव आदि

साहित्य — वेद, वेदान्त, इतिहास, पुराण, कथा, धर्मशास्त्र, आख्यानक, आख्यायिका, नाटक, कविता, कहानी, एकाङ्की, चलचित्र, डायरी, वार्ता, रेडियो आदि

सङ्गीत — सरगम, गायन, वादन, वाद्ययन्त्र आदि

रामचरितमानस — कथानक, भाव, संवाद, अभिनेयता, अवधी भाषा,दोहा, चौपाई, सोरठा, छन्द, श्लोक, गेयता आदि

यूँ ही… जिस का समझना चाहें ,समझते जायें

नोट:- इस उत्तर का आधार मेरी स्वयं की समझ है… अतः विचारों से सहमत न होने वाले पाठकगण अपनी असहमति टिप्पणी के माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं!
:pray:

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सुंदर लेख के लिए धन्यवाद

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