ऐ का उच्चारण अ+इ है तो हम अइ क्यों नहीं लिखते

पहले यह बात स्पष्ट कर लें कि :—

ऐ वस्तुतः ए तथा इ अथवा ए तथा ई की सन्धि कर बनता है। ऐ का उच्चारण अ + इ नहीं है। किन्तु ऐ का उच्चारण एइ अथवा एई भी नहीं है; क्योंकि यह एक अलग विशिष्ट ध्वनि है।

अ+इ का अर्थ है अ तथा इ की सन्धि। दो शब्दों में ऐसी सन्धि होने पर इसका संयुक्त उच्चारण ए हो जाता है। सन्धि के नियमों से इस उच्चारण परिवर्तन को स्पष्ट करते हैं।

अ + इ = ए; उदाहरणार्थ : राज + इन्द्र = राजेन्द्र

अ + ई = ए; उदाहरणार्थ : नाग + ईश = नागेश

आ + इ = ए; उदाहरणार्थ : पुलोमजा (शची) + इन्द्र = पुलोमजेन्द्र

आ + ई = ए; उदाहरणार्थ : राधा + ईश = राधेश

इन शब्दों में कहीं भी ए का उच्चारण आई, अइ, आइ, जैसा नहीं होता है। वस्तुतः इन स्वरों का संयुक्त स्वर होते हुए भी उच्चारण के लिए इनके मूल घटक स्वरों के उच्चारण स्थल के मध्य विशिष्ट उच्चारण स्थल निर्धारित किए गए हैं।

व्याकरण में ऐ को ए तथा इ, ए तथा ई, ऐ तथा इ, अथवा ऐ तथा ई की स्वर सन्धि के रूप में व्यक्त किया जाता है। यह अ / आ तथा ए / ऐ की वृद्धि संधि से भी बन सकता है। ऐ का उच्चारण स्थल ए तथा इ के उच्चारण स्थल के मध्य का है। (जैसे सदा + एव = सदैव)

इस चित्र से आप हिन्दी भाषा में प्रयुक्त वर्णों के मानक उच्चारण स्थलों को समझ सकते हैं :—

यहाँ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि संस्कृत भाषा में अ तथा ई के मध्य की ध्वनि ए को इन दोनों ध्वनियों के सन्धि ध्वनि रूप में चयनित किया गया। तथा अ और ए के मध्य की ध्वनि ऐ को इन दोनों ध्वनियों की सन्धि ध्वनि रूप में चयनित किया गया। अतः ए में अ तथा ई को खोजना कुछ ऐसा ही है कि आप नीले और पीले रङ्ग को मिला कर हरा रङ्ग बना लें; और हरे में नीले और पीले रङ्ग के स्वतन्त्र अस्तित्व को खोजने लगें; जो इन रंगों के मिश्रण में नहीं रह पाता।

प्राकृत भाषाओं में सन्धि के नियमों तथा संस्कृत के उच्चारण नियमों का पूर्ण रूप से पालन नहीं किया गया। अतः आञ्चलिक शब्दावली में ऐसा के स्थान पर अइसा; कैसा के स्थान पर कइसा, और के स्थान पर अउर आदि का प्रयोग मिलता है।

देवनागरी लिपि में लेखन का नियम यही है कि जैसा बोलें वैसा लिखें भी। अतः सन्धि के उपरान्त बना उच्चारण यदि दोनों मूल वर्णों के उच्चारण से इतना भिन्न है कि देवनागरी लिपि में इसके लिए एक स्वतन्त्र चिह्न निर्धारित किया गया है तो उसी चिह्न का प्रयोग करना सर्वोत्तम है।

#उच्चारण

© अरविन्द व्यास, सर्वाधिकार सुरक्षित।

इस आलेख को उद्धृत करते हुए इस लेख के लिंक का भी विवरण दें। इस आलेख को कॉपीराइट सूचना के साथ यथावत साझा करने की अनुमति है। कृपया इसे ऐसे स्थान पर साझा न करें जहाँ इसे देखने के लिए शुल्क देना पडे।

2 Likes

इस सन्धि का भी कोई उदाहरण बताइए।

पुलोमजा (शची) + इन्द्र = पुलोमजेन्द्र

1 Like

गण + ईश = गणेश, रमा + ईश = रमेश, रत्न + ईश = रत्नेश शब्द

1 Like